प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात में जल की बूंद बूंद बचाने का आग्रह किया ताकि जीवन बचाया जा सके। उन्होंने परम्परागत जल स्त्रोतों को सहेजने की भी बात की। उनकी इसी बात पर मंथन करते हुए हमने हिमाचल के
परम्परागत जल स्त्रोतों की थाह लेने की ठानी। हमारी पड़ताल का नतीजा चौंकाने वाला रहा। पता चला कि प्रदेश में डेढ़ दशक पहले तक हर गांव पर औसतन तीन जल स्रोतों की दर से 41536 जल स्रोत मौजूद थे जो अब घटकर महज 10512 रह गए हैं। इनमें से भी आधे अगले दो साल में मर जायेंगे।
नदियों, झीलों का घर होने के बावजूद हिमाचल में पानी के परम्परागत स्रोत- नौण, कुएं और
प्रदेश में वर्ष 2000 में कराए गए एक सर्वेक्षण में 41536 ऐसे जलस्रोत चिन्हित किये गए थे जहां से लोग पेयजल जरूरतें पूरी करते थे, लेकिन 2016 की स्थिति ये है कि अब इनमें से महज 10512 ही बचे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल अब ये भी है कि क्या हम अगले दशक में ये परम्परागत पेयजल स्रोत देख भी पाएंगे या नहीं?
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