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खुला मंच

फासीवाद बनाम प्रगतिशील

फासीवाद और प्रगतिशील दोनों विपरीत विचारधाराएं हैं। एक घोर संकीर्णवादी है तो दूसरी समाज में उदार दृष्टि के लिए जानी जाती है। इसलिए दोनों विचारधाराओं में टकराव की स्थिति आम बात है। आज देश में फासीवाद का दौर चरम पर होने के बावजूद प्रगतिशील लोग अपनी बात कहने से पीछे नहीं हटे हैं। यहां हम जन सामान्य में होने वाली आम बहसों में दोंनों विचारधाराओं का वर्गीकरण करने की कशिश करेंगे।

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फासीवादी कहेगा– गरीब आलसी होते हैं। मेहनती लोग अमीर होते हैं। उनकी अमीरी उनकी मेहनत के कारण होती है।  

प्रगतिशील कहेगा– किसान मजदूर लोग तो बहुत मेहनत करने के बाद भी गरीब बने रहते हैं। यह असल में गलत राजनैतिक सिस्टम की वजह से होता है कि चालाक लोग दूसरे की मेहनत और दूसरे के संसाधनों का फायदा उठा कर अमीर बन जाते हैं। जैसे अदाणी आदिवासियों की ज़मीनों और मजदूरों की मेहनत का फायदा उठा कर अमीर बना है। मेहनत के कारण नहीं।

फासीवादी कहेगा– झुग्गी झोंपड़ी में रहने वाले नशेड़ी और अपराधी होते हैं। इनके ऊपर पुलिस को सख्त कार्यवाही करनी चाहिये।

प्रगतिशील कहेगा- झुग्गी झोंपड़ियां हमारे समाज की गलत नीतियों के कारण बनी हैं। हमें इन नीतियों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। पुलिस को झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के साथ सख्ती करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। हमें इन जगहों पर रहने वाले लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम करना चाहिये।

फासीवादी कहेगा– औरतें कमज़ोर होती हैं, उन्हें अपने पिता या भाई से पूछे बिना घर के बाहर नहीं जाना चाहिये, औरतों को ढंग के कपड़े पहनने चाहिये, अपने साथ होने वाली छेड़छाड़ के लिए औरतों के कपड़े ज़िम्मेदार होते हैं।

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प्रगतिशील कहेगा– आदमी और औरत एक बराबर होती हैं। समाज को ऐसा माहौल बनाना चाहिये, जिसमें महिला रात को भी घूमने फिरने में डर महसूस ना करे। महिलाओं के साथ छेड़छाड करना पुरुषों की समस्या है इसलिए हमें लड़कों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिये कि वे महिलाओं के बारे में स्वस्थ ढंग से सोचें।

फासीवादी कहेगा– सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस सर्वोच्च होती हैं। जो भी सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस के बर्ताव पर सवाल खड़े करता है, वह देशद्रोही है।

प्रगतिशील कहेगा– सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस सरकार के आदेश पर चलती हैं। सरकार अमीरों की मुट्ठी में होती है, इसलिए अक्सर सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस अमीरों के फायदे के लिए गरीबों के विरुद्ध क्रूर बर्ताव करते हैं। इसलिए हम शासन को सेना, अर्ध सैनिक बल और पुलिस के बल पर चलाये जाने को पसंद नहीं करते। लोकतंत्र में जनता से बातचीत के द्वारा कामकाज किया जाना चाहिये।

फासीवादी कहेगा– राष्ट्र सर्वोपरी है। राष्ट्रभक्ति से बड़ा कोई कोई भाव नहीं है।

प्रगतिशील कहेगा– राष्ट्र भक्ति प्रतीकों से नहीं होती। झंडा लिए एक औरत का चित्र या तिरंगा झंडा या भारत का नक्शा राष्ट्र नहीं होता बल्कि राष्ट्रभक्ति वास्तविक होनी चाहिये। राष्ट्र का मतलब इसमें रहने वाले सभी गरीब, अल्पसंख्यक, आदिवासी होते हैं। इनके मानवाधिकारों और इनकी बराबरी का ख्याल रखना ही सबसे बड़ा काम होना चाहिये। इनके अधिकारों को कुचल कर राष्ट्र की बात करना ढोंग है।

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फासीवादी कहेगा– पाकिस्तान आतंकवादी देश है। उसे कुचल देना चाहिये।

प्रगतिशील कहेगा- पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है, पाकिस्तान हमेशा हमारे पड़ोस में ही रहेगा। हमें पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखने चाहिए। हमारे बीच में जो भी झगड़े के मुद्दे हैं उनका हल कर लेना चाहिये। हम पाकिस्तान से इसलिए भी नफ़रत करते हैं, क्योंकि हम अपने देश के मुसलमानों से ही नफ़रत करते हैं। अगर हम मुसलमानों से नफ़रत करना बंद कर दें तो हमारी पाकिस्तान के प्रति नफ़रत भी खत्म हो जायेगी। आतंकवादी हरकतें दोनों देशों की सरकारें करती हैं। दोनों मुल्कों के हथियारों के सौदागर दोनों मुल्कों के बीच डर का माहौल बनाते हैं ताकि जनता हथियार खरीदने को मंजूरी देती रहे। लेकिन वह पैसा तो असल में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च होना चाहिये। भारत और पाकिस्तान के सिर्फ दो सौ परिवार ऐसे हैं जो हथियार खरीदी से कमीशन खाते हैं और चुनावों में चंदा देते हैं और दोनों मुल्कों की जनता को एक दूसरे से डराते रहते हैं ताकि उनका धंधा चलता रहे।

फासीवादी कहेगा– सेक्युलर लोग देशद्रोही हैं, इन्हें पाकिस्तान भेज दो।

प्रगतिशील कहेगा– लोकतंत्र का मतलब बहुसंख्य आबादी का अल्पसंख्यक आबादी पर शासन नहीं होता। उसे तो भीड़तंत्र कहा जाता है। लोकतंत्र का मतलब है सभी नागरिक सामान हैं, सबकी इज्ज़त बराबर है, सबके अधिकार बराबर हैं।  भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की बराबरी की बात करने वाले लोगों को सिक्युलर और शेखुलर कह कर चिढ़ाया जाता है। इसी तरह पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के बराबर अधिकार की बात करने वाले मुस्लिम लोगों को पाकिस्तान के कट्टरपन्थी लोग गाली देते हैं और उन्हें भारत का एजेन्ट कहते हैं।

(लेखक हिमांशु कुमार विख्यात गांधीवादी, प्रगतिशील, लेखक एवं समाज सेवी हैं।)

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Himanshu Kumar

Himanshu Kumar is a famous social worker and a writer. Presently he is working for the triable people of India. He also writes regularly for different magazines.

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