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उत्तराखंड

टिहरी डैम में डूबे मकानों में रहने को क्यों मजबूर हैं लोग?

देहरादून। राष्ट्रहित में जब गांव के गांव उजाड़ दिए जाते हैं तो उजड़ने वालों में केवल वो लोग ही नहीं होते जो जमीन या मकान के मालिक होते हैं। बड़ी संख्या में भूमिहीन, संपत्तिहीन वैसे लोग भी प्रभावित होते हैं, जो वहां परिवार के भरण पोषण के लिए छोटा मोटा काम धंधा या मेहनत मजदूरी करते हैं। परंतु जब मुआवजा बांटने की बारी आती है तो सरकारें अकसर ऐसे प्रभावितों को नजरंदाज कर देती है जो भूमिहीन या संपत्तिहीन होते हैं।

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टिहरी बांध क्षेत्र में कुमराड़ा गांव के वासी विद्या सिंह इसी सरकारी उपेक्षा की एक मिसाल हैं। टिहरी बांध में विद्या सिंह के मकान का भूतल डूब चुका है, लेकिन उन्हें मुआवजा नहीं मिला। परिणाम स्वरूप वे झील में आधे डूबे मकान में परिवार सहित रहने के लिए मजबूर हैं।

टिहरी बांध का जलस्तर आरएल (रिवर लेबल) 830 मीटर तक भरने से कुमराड़ा निवासी विद्या सिंह के मकान का भूतल पूरी तरह से पानी में डूब गया है। लेकिन प्रशासन ने भवन का मुआवजा इसलिए नहीं दिया, क्योंकि जिस भूमि पर उनका मकान बना है, उसकी रजिस्ट्री विद्या सिंह के नाम नहीं है।

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चिन्यालीसौड़ ब्लाक के ग्राम कुमराड़ा निवासी विद्या सिंह ने डीएम को दिए ज्ञापन में बताया कि चार पीढ़ी पहले उनके पूर्वज इस गांव में बसे थे। उस समय जिस जमीन पर उन्होंने मकान बनाया, उसकी रजिस्ट्री नहीं हो पाई थी। जिस कारण जमीन का मुआवजा तो भूस्वामी को मिला, लेकिन उसे मकान का मुआवजा नहीं दिया गया। अब झील का पानी मकान के भूतल तक पहुंच गया है, लेकिन दूसरी जगह कोई ठिकाना नहीं होने से वह परिवार के साथ पानी में डूबे मकान में रहने को मजबूर है।

जिला पंचायत सदस्य जयवीर सिंह रावत ने बताया कि क्षेत्र में इस तरह के कई मामले हैं, जिससे लोगों को जान जोखिम में डालकर रहना पड़ रहा है। टिहरी बांध की झील का जलस्तर आरएल 830 मीटर तक भरने से कई लोग इसी तरह की दिक्कतों से जूझ रहे हैं। समस्याओं के निराकरण के लिए फिर से सर्वे करने की जरूरत है।

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इस बाबत अवस्थापना खंड पुनर्वास के ईई धीरेंद्र नेगी ने कहा कि आरएल 835 मीटर तक के सभी मामलों का निस्तारण कर दिया गया है। उन्हें भवन प्रतिकर नहीं मिला है, तो साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते हैं। उसके बाद ही कोई कार्यवाही की जा सकेगी।

देश की राष्ट्रीय पुनर्वास नीति के अनुसार यदि किसी राष्ट्रीय परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जाता है तो मुआवजे के हकदार वहां के भूमि मालिकों के साथ- साथ दुकानदार, रेहड़ी-फड़ी वाले, नाई, धोबी और मेहनत मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करने वाले सभी होते हैं। टिहरी बांध से प्रभावित हुए बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को सरकारों ने पूरी तरह नजरंदाज कर दिया, जिस कारण समाज में इस बांध के जख्म आज तक रिसते हुए देखे जा सकते हैं।

  

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एचएनपी सर्विस

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