शिमला। प्रदेश में जनजातीय महिलाओं का पिछले कई दशकों का संघर्ष अंततः रंग लाया। हिमाचल प्रदेश उच्च
हिमाचल हाईकोर्ट के न्यायाधीश राजीव शर्मा ने जनजातीय क्षेत्रों में चल रही इस प्रथा को गलत ठहराते हुए आदेश दिया है कि वहां लड़कों की तर्ज पर लड़कियां भी अपने पिता की संपत्ति पाने का हक रखती हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह की प्रथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, 38, 39 और 46 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। अदालत ने हिंदू सक्सेसन एक्ट के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए कहा कि कबायली क्षेत्रों की लड़कियों को भी पिता की संपत्ति पाने का अधिकार है।
प्रदेश में जनजातीय क्षेत्रों की महिलाएं पिछले कई दशकों से भू राजस्व अधिनियम- 1954 को लागू कराने के लिए संघर्षरत थीं ताकि उन्हें भी राज्य के शेष क्षेत्र की तरह पैतृक संपत्ति में अधिकार मिल सके। चुनाव के दौरान नेतागण उन्हें हर बार आश्वासन देते रहे, लेकिन बाद में इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। शायद ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि वहां पुरुषों का एक वर्ग इस प्रथा को बनाए रखना चाहता था और नेताओं के लिए इस वोट बैंक को नाराज करना मुश्किल हो गया। लेकिन अब अदालत के फैसले से अंततः जनजातीय महिलाओं को राहत मिल गई।
महिलाओं की दयनीय स्थितिः महिला कल्याण परिषद किन्नौर की अध्यक्ष रत्न मंजरी कहती है कि भू राजस्व अधिनियम-1954 को नजरंदाज करते हुए जनजातीय किन्नौर और लाहौल स्पीति जिलों में जबरन अंग्रेजों के समय से भी पुराने कानून को थोपा गया है। परिवार की संपत्ति बाहर के लोगों को न जाए, इसलिए यहां पैतृक संपत्ति का बंटवारा सिर्फ बेटों में ही किया जाता है। बेटा न होने पर संपत्ति अपने आप उसके भाई के बेटों में ट्रांसफर हो जाती है।
रत्न मंजरी ने बताया कि भू राजस्व अधिनियम-1954 लागू नहीं होने के कारण जनजातीय क्षेत्रों में महिलाएं खुद को बहुत असुरक्षित महसूस कर रही हैं। बिन ब्याही महिला हो चाहे किसी कारण मायके में रहने के लिए मजबूर विवाहिता, उन्हें अपने माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलने के कारण भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अकसर घरों में उनकी हैसियत बंधुआ नौकरों की सी हो जाती है।
स्पीति में एक और विचित्र प्रथाः जनजातीय जिला लाहौल स्पीति के स्पीति में एक अन्य विचित्र राजस्व कानून भी लागू है। वहां पैतृक संपत्ति पर केवल बड़े बेटे का ही अधिकार रहता है। वहां बेटियों और छोटे बेटों को पुश्तैनी संपत्ति नहीं मिलती। सबसे छोटे बेटे को लामा बना दिया जाता है।
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