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स्वास्थ्य सेवाएं चौपट, करोड़ों की मशीनरी खा रही जंग

देहरादून। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह चरमरा गई हैं। स्थिति का अनुमान यहां के पं.गोवर्धन तिवारी बेस चिकित्सालय

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अल्मोड़ा को देखकर भी लगाया जा सकता है। ‘बेस’ चिकित्सालय से परिकल्पना की जाती है कि इसमें स्वास्थ्य की आधुनिक आधारभूत सुविधाएं मौजूद होंगी, लेकिन यहां स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। गंभीर बीमारियों की बात तो दूर सर्दी-जुकाम के रोगियों का ही इलाज ढंग से हो जाए तो गनीमत है।
अल्मोड़ा में जब बेस चिकित्सालय की स्थापना की गई थी तो प्रचार किया गया था कि इसे कुमाऊं का एक ऐसा स्वास्थ्य केंद्र बनाया जाएगा, जहां पूरे मंडल के रोगियों को दिल्ली जैसे महानगरों की सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इसी कारण यहां करोड़ों की लागत के ‘टेली मेडिसिन केंद्र’ व ‘ट्रॉमा सेंटर’ स्थापित किए गए, लेकिन इनकी सारी मशीनरी जंग खा रही हैं, क्योंकि इन्हें चलाने के लिए विशेषज्ञ ही नियुक्त नहीं हैं। यही नहीं यहां एक्स-रे मशीन, डायलिसिस और इको हार्ट मशीनें भी धूल फांक रही हैं। अस्पताल में प्रमुख अधीक्षक, सीनियर सर्जन, न्यूरो सर्जन, कार्डियोलॉजिस्ट, चैस्ट सर्जन, फिजीशियन, पैथोलॉजिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट और सीनियर जीडीएमओ के पद काफी अरसे से रिक्त पड़े हैं।
अल्मोड़ा का बेस चिकित्सालय तो एक उदाहरण है। वास्तव में पूरे जिले में
ही स्वास्थ्य व्यवस्था बुरी तरह चरमराई हुई है। जिले में चिकित्सकों के 205 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में मात्र 75 चिकित्सक ही सेवारत हैं। इनमें से भी अनेक चिकित्सक अवकाश पर हैं।
उत्तराखंड के पूर्व स्वास्थ्य निदेशक डा. जेसी दुर्गापाल कहते हैं, ‘राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ वाली हालत है। अल्मोड़ा जिले की हालत सबसे खस्ता है। सरकार बात तो यहां मेडिकल कालेज खोलने की करती है, लेकिन बेस चिकित्सालय में ऐसी हालात हैं कि वह मेडिकल कालेज के सामान्य मानकों में भी फिट नहीं बैठ रहा है।’
अल्मोड़ा के विधायक एवं संसदीय सचिव मनोज तिवारी का इस बारे में कहना है कि बेस चिकित्सालय की समस्याओं को दूर करने के लिए कार्यवाही चल रही है। क्षेत्र के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें, इसके लिए गंभीरता से प्रयास किए जाएंगे।

हिम न्यूज़पोस्ट.कॉम

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