देहरादून। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आजकल प्रदेश में जहां भी दौरे पर निकलते हैं, ताबड़तोड़ की घोषणाएं करते रहते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि
प्रदेश की पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल में 2386 घोषणाएं की थीं। इनमें से एनडी तिवारी केवल 932 घोषणाएं ही पूरी कर सके। शेष 1454 घोषणाएं अधर में ही लटकी रहीं। उसके बाद प्रदेश में भाजपा सरकार बनी और भुवन चन्द्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने। श्रीखंडूरी की छवि थी कि वे जो कहते हैं पूरा करते हैं, लेकिन आंकड़े इसकी भी गवाही नहीं दे रहे। उन्हें पांच साल की भाजपा सरकार में दो मौके मिले। पहले कार्यकाल में उन्होंने 484 घोषणाएं कीं, जिनमें से 302 ही पूरी हो सकीं। अलबत्ता दूसरे कार्यकाल में उन्होंने 33 घोषणाएं कीं और उन्हें शत प्रतिशत पूरा किया। भाजपा के मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल घोषणाएं करने में सबसे आगे रहे। उन्होंने अपने 26 माह के शासनकाल में 1940 घोषणाएं कीं, लेकिन इनमें से मात्र 643 ही पूरी हो सकीं।
विजय बहुगुणा सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल में की गई घोषणाओं का ब्यौरा ही सरकारी आंकड़ों में उपलब्ध है। उन्होंने एक वर्ष में ताबड़तोड़ 848 घोषणाएं की, जिनमें से 10 प्रतिशत भी अंजाम तक नहीं पहुंच पाईं। उनकी ताबड़तोड़ घोषणाओं का क्रम लगातार जारी है। पिछले दिनों कुमाऊं मंडल के तीन जिलों के भ्रमण के दौरान उन्होंने दर्जनों घोषणाएं कीं। लेकिन सरकारी अमला महसूस कर रहा है कि मुख्यमंत्री की घोषणाओं को आम जनता कतई गंभीरता से नहीं ले रही हैं, बल्कि मुख्यमंत्री को अकसर जनता के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। गत दिवस उत्तरकाशी पहुंचे मुख्यमंत्री को आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग जाम कर मातली की ओर जा रहे सीएम का काफिला रोक लिया। फलस्वरूप मुख्यमंत्री को करीब दो सौ मीटर की दूरी पैदल ही नापनी पड़ी। उसके बाद वे दूसरे वाहन से हेलीपैड रवाना हुए।
मुख्यमंत्री की घोषणाओं में अमूमन सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा से जुड़ी समस्याएं अधिक रहती है। कभी कभार बड़ी घोषणाएं भी रहती हैं, जिनसे आम जनता को बहुत उम्मीद होती है। भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री डा.रमेश पोखरियाल निशंक ने प्रदेश में चार नए जिलों की घोषणाएं की थी। इनमें कुमाऊं में रानीखेत और डीडीहाट जिला भी शामिल था, लेकिन उन्होंने इसे पूरा नहीं किया। भाजपा के हाथ से सत्ता के जाते ही नए जिलों के गठन का मामला ठंडे बस्ते में चला गया है।
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