उत्तराखंड राज्य में पूर्व घोषित चार नए जिलों का गठन खंडूड़ी सरकार के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। पिछले स्वतंत्रता दिवस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने चार नए जिलों- यमुनोत्री, कोटद्वार, डीडीहाट और रानीखेत के गठन की घोषणा की थी। अब विधानसभा चुनाव से पूर्व इसे पूरा करना सरकार की मजबूरी बन गया है। हालांकि हाल ही में इसे कैबिनेट से मंजूरी भी मिल चुकी है, लेकिन विभिन्न कारणों से काफी समय बीत जाने पर भी इस संबंध में अधिसूचना जारी नहीं हो पाई।
ये नए जिले उत्तरकाशी, पौड़ी, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों के विभाजन से बनाए जाने हैं। दरअसल, नए जिलों की घोषणा के एक माह बाद ही राज्य सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हो गया, जिससे मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। अब विधानसभा चुनाव निकट आते ही नए मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने नए जिलों के मामले को आगे बढ़ाना शुरू किया है।
हालांकि राजस्व महकमे ने मुख्यमंत्री की घोषणा के एक हफ्ते बाद ही नए जिलों के लिए जरूरी ब्यौरा तैयार करना शुरू कर दिया था, लेकिन बताया जाता है कि सरकार को अभी तक भी पूरा ब्यौरा उपलब्ध नहीं हुआ है। नतीजतन गत पांच नवंबर को कैबिनेट में चार नए जिलों के गठन का प्रस्ताव तो आया, मगर कुछ जिलों की सीमा निर्धारण, मुख्यालय निर्धारण और तहसीलों व थाना क्षेत्रों के विभाजन के कारण पैदा दिक्कतों को देखते हुए कैबिनेट ने इसे मंजूर नहीं किया। तब इस मामले को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी के सुपुर्द कर दिया गया। इसके बाद गत 12 नवंबर की कैबिनेट की बैठक में चारों जिलों के गठन को मंजूरी तो दे दी गई, मगर इनकी सीमाओं, मुख्यालयों और डीएम-एसपी समेत अन्य अफसरों की तैनाती के मसले को भविष्य के लिए छोड़ दिया गया। कहा गया कि सरकार जल्द इस संबंध में प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर देगी। लेकिन काफी समय बीत जाने पर भी अभी तक सरकार इस दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है। इस स्थिति पर चर्चा के लिए गत 28 नवंबर को कैबिनेट की बैठक से पूर्व समूचे मंत्रिमंडल ने बैठक की। इसमें भी मुख्यतया वही बातें उठीं कि किस तरह और किस स्वरूप में अधिसूचना जारी की जाए। जिलों की सीमाएं और मुख्यालय तय न होने और अफसरों की तैनाती न होने पर अधिसूचना में किन बिंदुओं को शामिल किया जाए? माना जा रहा है कि अब सरकार शीघ्र ही नए जिलों के गठन को लेकर कोई अधिसूचना या फिर शासनादेश जारी करेंगी। विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार की यह मजबूरी भी है।