बाप दादाओं ने साहुकारों से कुछ कर्जा लिया था, जो मनमानी ब्याज दर के चलते बढ़ते-बढ़ते कई गुणा हो गया। वो कर्जा नहीं चुका पाए तो अब साहुकारों ने उनके बच्चों पोतों को बंधुआ मजदूर बना लिया है। अमानवीय शोषण का शिकार इन मजदूरों में से कुछ को तो यह भी नहीं मालूम कि उनके किन बुजुर्गों ने कितना कर्जा लिया था।
यह कहानी है उत्तराखंड में देहरादून के निकट चकराता क्षेत्र की। यहां एक एनजीओ ‘अराधना ग्रामीण समिति’ के सहयोग से गत 13 दिसंबर को देहरादून पहुंचे ऐसे पांच बंधुआ मजदूरों ने जिलाधिकारी के समक्ष अपना यह दुखड़ा रोया और गुहार लगाई कि उन्हें साहुकारों के चंगुल से छुड़ाया जाए। जिलाधिकारी ने संबंधित उप जिलाधिकारी को अविलंब स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं।
इन बंधुआ मजदूरों आनंदू, मुन्ना, दापड़ू, छोटू और नांदू ने जिलाधिकारी को बताया कि वो जन्म से ही चकराता के कुछ रसूखदार लोगों के यहां बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं। अगर काम पर नहीं जाते हैं तो उनसे सदियों पहले बुजुर्गों द्वारा लिया गया कर्ज मांगा जाता है, जो समय के साथ-साथ मूल धन से कई गुना ज्यादा हो चुका है। पैसा न होने के चलते वे बंधुआ मजदूरी करने को मजबूर हैं। उन्होंने बताया कि यदि वो काम पर जाने से इंकार करते हैं उनके साथ मारपीट की जाती है। इन मजदूरों में से कुछ को तो यह तक नहीं मालूम कि उनके परिवार में कर्ज किसने और कितना लिया था। बंधुआ मजदूर आनंदू ने बताया कि चकराता में उनकी ही तरह और भी कई लोग हैं जो बुजुर्गों द्वारा लिए गए कर्ज के कारण बंधुआ मजदूरी करने को मजबूर हैं। जिलाधिकारी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि शीघ्र ही पूरे मामले की जांच कर उचित कार्यवाही की जाएगी।