नाहन। सिरमौर जिला ने पुरानी रूढ़ीवादी बेड़ियों को तोड़ने में एक बार फिर से स्वयं को सिरमौर साबित किया है। जिला में पांवटा साहिब के एक युवा जोड़े ने विवाह की पुरानी परंपराओं को त्याग कर बिना पुरोहित के एकदम नए अंदाज में संविधान को साक्षी मान कर अपना विवाह रचाया। सोशल मीडिया में इस विवाह के साथ ही विवाह का अनूठे अंदाज में छपा कार्ड भी खूब वायरल हो रहा है।
पांवटा साहिब के अप्पर धमौन गांव के प्रवेश भारत और सालवाला गांव की निशा गत 16 मई को सदियों पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए नये अंदाज में विवाह के सूत्र में बंधे। शादी के कार्ड से लेकर विवाह की रस्मों तक सबकुछ नये अंदाज में दिखा।
विवाह के कार्ड में कोई भी धार्मिक चिन्ह अंकित नहीं था, बल्कि उसके स्थान पर प्रकृति, संविधान और विज्ञान के चिन्ह अंकित थे। कार्ड के ऊपर एक ओर लिखा था-‘ मनुष्य का कल्याण करने वाली प्रकृति की जय हो, मनुष्य को न्याय, समता दिलाने वाले संविधान की जय हो, मनुष्य के दुखों, अज्ञानता को दूर करने वाले विज्ञान की जय हो।’
कार्ड के दूसरे किनारे ऊपर संत कबीर दास का दोहा लिखा था,‘पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया ना कोय, ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय।’
दूल्हा- दुल्हन ने बिना पंडित के संविधान को साक्षी मानकर एक- दूसरे को वर मालाएं डालीं और विवाह संपन्न हो गया। शादी में गत 15 मई को मामा स्वागत, सेहराबंदी, महिला संगीत की रस्म अदा की गई। अगले दिन 16 मई को बारात प्रस्थान से लेकर दुल्हन प्रवेश तक की सभी रस्में अनूठे ढंग से निभाई गईं।
दूल्हा और दुल्हन दोनों ही सरकारी नौकरी में सेवारत हैं। दोनों ही पुरानी रूढ़ियों को तोड़ने के लिए उत्सुक थे। इसीलिए उन्होंने अपनी शादी के लिए कुछ नया करने की सोची।
प्रवेश का कहना है कि विवाह दो दिलों का मेल है, इसमें किसी कर्मकांड या पुराने पड़ चुके रीति रिवाजों का क्या काम। प्रवेश के अनुसार उन्हें लड़की के परिवारवालों को इसके लिए तैयार करने में थोड़ी मशक्त जरूर करनी पड़ी, लेकिन अंत में वे मान गए।
विवाह के दौरान जब गाजे बाजे के साथ दुल्हन लेने के लिए बारात आई तो लड़की वालों ने उनकी पूरी आवभगत की। इसके बाद दूल्हा- दुल्हन ने संविधान को साक्षी मानकर एक- दूसरे का हाथ थामा, वर मालाएं एक- दूसरे को पहनाईं और बारात दुल्हन लेकर लौट आई।
पुरानी प्रथाओं को तोड़ने वाली यह शादी पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस युगल ने दूसरे युवाओं के लिए भी कुछ नया करने की मिसाल पैदा की है।
उल्लेखनीय है कि सिरमौर जिला में विभिन्न सामाजिक संगठन विवाह, जन्म, मरण अथवा दूसरे संस्कारों में सदियों से चली आ रही कुरीतियों को दूर करने में जी जान से जुटे हैं। पुरानी परंपराओं की जगह नई सरल नियमावलियां बनाई जा रही हैं। विवाह में बारातियों की संख्या सीमित की जा रही है, शराब एवं मांसाहार पर रोक लगाई जा रही है। विवाह में मामा पक्ष पर चल रही कठिन रस्मों को आसान किया जा रहा है। मृत्यु भोज का भी व्यापक विरोध हो रहा है। इसी कड़ी में इस अनूठे विवाह ने भी सिरमौर का नाम और रौशन किया है।