जयपुर। राजस्थान में किसानों के अभूतपूर्व तीव्र संघर्ष की शानदार जीत हुई है। वसुंधरा सरकार की हेकड़ी नहीं चल पाई और अंततः उसे किसानों के आगे झुकना पड़ा। पिछले 13 दिनों से ऐतिहासिक भागीदारी वाला यह आंदोलन पूरे राज्य में फैल गया था। समाज के विभिन्न वर्गों ने जिस तरह खुल कर तन, मन और धन से इस आंदोलन को समर्थन दिया, वह अतुलनीय है। हाल के वर्षों में वामपंथ की यह बहुत बड़ी जीत मानी जा रही है।
वसुंधरा सरकार ने किसानों की निम्न मांगें मानी हैं-
इस समझौते और उस पर अमल की प्रक्रिया तय हो जाने के बाद अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष और पूर्व विधायक आमरा राम ने तीन दिन से प्रदेश भर में चले आ रहे महापड़ाव और रास्ता- बंदी को स्थगित करने का एलान कर दिया।
बीती रात को ही आमरा राम ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि 14 सितम्बर की सुबह 8 बजे तक किसानों की मांगें मान ली गयीं तो किसान जश्न मनाएंगे- वरना सुबह 8 बजे से पूरे राजस्थान को जाम कर दिया जाएगा। सरकार ने रात एक बजे ही घुटने टेक दिए।
राज्य में 1 सितम्बर से शुरू हुआ यह किसान आंदोलन की अनेक मामलों में खास था। आंदोलन का मुख्य केंद्र सीकर था, लेकिन इसने पूरे राजस्थान को सड़कों पर ला दिया था। महिलाओं ने इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इसमें सबसे बेमिसाल थी बस- ट्रक- ऑटो और रिक्शा वालों सहित मजदूरों तथा व्यापारियों की खुली भागीदारी।
छात्रों ने भी इस आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई। समाज का कोई तबका इस लड़ाई से बाहर नहीं छूटा, बैंड और डीजे वाले भी आंदोलन में शामिल हुये। जन सहयोग इतना विराट था कि अकेले सीकर में महापड़ाव पर बैठे किसानों का रोज का भोजन इत्यादि का 5 लाख रुपये रोज वहीं इकट्ठा हो जाय करता था। तीन दिन से जारी चक्का जाम का असर 20 जिलों में प्रभावी था, इसमें सिर्फ एम्बुलेंस और अत्यावश्यक सेवाओं को छूट दी गयी थी।
आंदोलन से ध्यान बंटाने के लिए शरारती तत्वों ने पहले सीकर और बाद में जयपुर में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने और अफवाहें फैलाकर माहौल दूषित करने की काफी कोशिशें कीं, मगर जनता झांसे में नहीं आयी।
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