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देहरादून। नैनीताल हाईकोर्ट ने अहम फैसला लेते हुए उत्तराखंड में लागू राष्ट्रपति शासन पर रोक लगा दी है और सरकार को सदन में शक्ति परीक्षण के लिए 31 मार्च की तिथि तय की है। अदालत का यह फैसला केंद्र सरकार और भाजपा के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। अदालत ने स्पीकर के शक्ति परीक्षण के आदेश को ही क्रियान्वित किया है। बस तिथि 28 मार्च की जगह 31 मार्च की गई है।
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने धारा 356 का प्रयोग करते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था। निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे चुनौती देते हुए नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर लगातार दो दिन सुनवाई चली। कांग्रेस के बागी एवं निलंबित विधायकों की याचिका पर भी अदालत ने उन्हें शक्ति परीक्षण में शामिल होने का अधिकार दिया है, लेकिन उनके वोट अलग बंद लिफाफे में रखे जाएंगे। सदन में शक्ति परीक्षण अदालत की कड़ी निगरानी में होगा। इसके लिए हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आब्जर्वर नियुक्त किया गया है। अदालत ने राज्य के डीजीपी को भी यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि फ्लोर टेस्ट के दौरान सदन में कानून व्यवस्था नहीं बिगड़ने पाए। शक्ति परीक्षण का परिणाम एक अप्रैल को हाईकोर्ट ही घोषित करेगा।
न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की एकल पीठ में चले इस मुकद्दमे में सरकार की ओर से वकील तुषार मेहता तथा बीजेपी की ओर से वरिष्ठ भाजपा नेता एवं वकील नलिन कोहली ने बहस की। हरीश रावत की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ वकील मनु सिंघवी ने पैरवी की।
उत्तराखंड की 71 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 36, भाजपा के 28, बसपा के दो विधायक तथा यूकेडी का एक विधायक हैं। इसके अतिरिक्त तीन विधायक निर्दलीय और एक विधायक मनोनीत हैं। बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत है, लेकिन यदि कांग्रेस के बागी 9 विधायक दलबदल कानून के तहत अयोग्य घोषित हो जाते हैं तो बहुमत के लिए 31 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। मुख्यमंत्री हरीश रावत अपने साथ 34 विधायक साथ होने का दावा कर रहे हैं। भाजपा भी सदन में बहुमत का दावा कर रही है। दोनों पक्षों के दावों में कितना दम है, इसका फैसला 31 मार्च को हो जाएगा।