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देहरादून। केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट की दो सदस्यीय बैंच ने विधानसभा में 31 मार्च को होने वाले शक्ति परीक्षण पर रोक लगा दी है। केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को अदालत में पेश हुए अटार्नी जनरल मुकुल रस्तोगी ने यह स्पष्ट करने की मांग की कि जब विधानसभा निलंबित अवस्था में हो और राष्ट्रपति शासन लागू किया गया हो, तब क्या सदन में शक्ति परीक्षण कराया जा सकता है? अदालत ने शक्ति परीक्षण पर रोक लगाते हुए केंद्र सरकार को शपथपत्र के साथ अपनी बात रखने का आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई 6 अप्रैल को रखी गई है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में राज्यपाल की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने उत्तराखंड विधानसभा को निलंबित कर वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। इसके बाद कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी पर आधारित एकल पीठ ने राष्ट्रपति शासन पर रोक लगा दी थी और सरकार को शक्ति प्रदर्शन के लिए 31 मार्च की तिथि घोषित की थी।
माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड प्रकरण को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। चर्चा है कि सरकार संसद में उत्तराखंड को अध्यादेश लाने की भी तैयारी कर रही है। उत्तराखंड में बागी नौ विधायकों के अयोग्य घोषित किए जाने के बावजूद हरीश रावत सदन में पूर्ण बहुमत का दावा कर रहे हैं।
उत्तराखंड की 71 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 36, भाजपा के पास 27, बसपा के पास दो विधायक तथा यूकेडी का एक विधायक है। इसके अतिरिक्त तीन विधायक निर्दलीय और एक विधायक मनोनीत हैं। भाजपा का एक विधायक फिलहाल बर्खास्त है। बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत है। लेकिन यदि कांग्रेस के बागी 9 विधायक दलबदल कानून के तहत अयोग्य घोषित मान लिए जाते हैं तो बहुमत के लिए कुल 31 विधायकों की ही जरूरत पड़ेगी। मुख्यमंत्री हरीश रावत 34 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं।