लखनऊ। प्राकृतिक आपदा और सरकारी संवेदनहीनता के चलते उत्तरप्रदेश का बुंदेलखंड अकाल के गाल में समाता जा रहा है। हाल ही में आई एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार बुंदलेखंड में 55 प्रतिशत लोग रोजी रोटी के लिए अन्यत्र पलायन कर गए हैं, 45 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं का हिमोग्लबिन 6 से नीचे है, 93 प्रतिशत किसान कर्जे से ग्रस्त हैं, 86 प्रतिशत घरों में अब दाल -सब्जी नहीं बनती, सर्दियों में 88 प्रतिशत लोगों के पास गर्म कपड़े नहीं थे, 82 प्रतिशत कृषि भूमि पानी के अभाव में नहीं बोई जा सकी, 1000 में से 6 लोग दवाओं के अभाव में प्रतिदिन मरते हैं, 1000 में से 7 महिलाएं प्रसव के दौरान दम तोड़ देती हैं और 1000 में से 22 किसान अपनी जमीन बेच कर घर का गुजारा कर रहे हैं।
सर्वेक्षण रिपोर्ट आने के तुरंत बाद वामदलों- सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने बुंदेलखंड में केंद्र और राज्य सरकारों का ध्यान खींचने के लिए दो माह तक व्यापक अभियान चलाया और पाया कि यह क्षेत्र अब केवल सूखे से ही नहीं बल्कि अकाल से जूझ रहा है। स्थिति से निपटने के लिए सरकार कुछ भी ठोस नहीं कर रही।
बुंदेलखंड में पिछले 7- 8 वर्षों के दौरान दो बार जबरदस्त बारिश हुई और वह इतनी थी कि सब कुछ बहा ले गई। उसके अलावा निरंतर सूखे की स्थिति अब अकाल का रूप धारण कर चुकी है। वहां मौत इतनी स्वाभाविक हो गई है कि उस पर पड़ोसी और परिजन भी विचलित नहीं होते, क्योंकि लोगों को लगने लगा है कि मुक्ति का आखिरी उपाय था उसके पास।
वामदलों के दो माह चले अभियान के अंत में गत 23 फरवरी को मंडल मुख्यालय बांदा में हुए एक प्रदर्शन में बांदा के अलावा आसपास के क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में किसान और खेतीहर मजदूर जुटे। पार्टी नेताओं के अलावा स्थानीय लोगों ने भी बुंदेलखंड की स्थिति पर अपने विचार व्यक्त किए। सीपीएम के राज्य सचिव मंडल सदस्य दीनानाथ सिंह (पूर्व विधायक), सीपीआई के राज्य सचिव गिरीश, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के सचिव मंडल सदस्य ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा, सीपीएम के राज्य कमेटी सदस्य सुधीर सिंह, सीपीआई के राज्य कमेटी सदस्य फूलचंद यादव, रामचंद सरस, राम प्रवेश यादव आदि ने प्रदर्शकारियों को मुख्यरूप से संबोधित किया।
वक्ताओं ने कहा कि बुंदेलखंड में आए दिन कितने ही लोग अकाल की भेंट चढ़ रहे हैं। उनकी सुध लेना वाला कोई लेखपाल या अधिक से अधिक एक तहसीलदार होता है जो गांव जाकर अपनी गाड़ी से उतरे बिना यह रिपोर्ट दे देता है कि मृतक किसान अपनी बेटी की बदचलनी से आहत होकर फांसी लगा बैठा या लंबी बीमारी से ऊब कर आत्महत्या कर ली। जिस तरह के आर्थिक सामाजिक कारण किसानों की असंख्य मौतों के लिए जिम्मेदार हैं, उन पर सरकारी तंत्र में कोई चरचा तक नहीं हो रही। समस्या की जड़ पर कोई जिरह नहीं है।
पूरे बुंदेलखंड में तालाब ही सिंचाई के मुख्य स्रोत हैं। ये वहां किसानों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के साथ- साथ भूमिगत जल स्तर को बनाए रखने में भी मदद करते हैं। इस दृष्टि से पुराने तालाबों के संरक्षण और नए तालाबों के निर्माण के प्रति अनुभवजन्य सृजनशीलता चाहिए। यहां पुराने तालाबों पर दबंगों और बेसहारों के कब्जे हैं। दबंग तालाबों को जोत कर खेती कर रहे हैं और बेसहारा लोग भी तालाब की भूमि पर बस गए हैं। वक्ताओं का कहना था कि इस तरह बसे बेसहारा लोगों को गांवों में पड़ी ग्राम सभा की खाली जमीनों पर आवासीय पट्टे देकर तालाबों को खाली कराया जा सकता है और दबंगों पर सख्ती कर उन्हें तालाबों से बेदखल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकारी नलकूपों की स्थिति बहुत दयनीय है। वहां छोटे मोटे प्रबंधकीय सुधार करके 80 फीसदी बंद पड़े नलकूपों को चालू किया जा सकता है।
(लेखक, सुधीर सिंह सामाजिक कार्यकर्ता हैं और सीपीआई (एम) से जुड़े हैं।)