चमोली (जोशीमठ) । उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति में ‘रम्माण’ का बहुत महत्व है। रम्माण
जोशीमठ के निकट सलूड़ डुंग्रा गांव के भूम्याल मंदिर परिसर में बुधवार को रम्माण का मेला हर्षोल्लासपूर्वक संपन्न हुआ, जिसमें ग्रामीणों की भारी भीड़ उमड़ी। रम्माण मेला सलूड़ डुंग्रा गांव में प्राचीन काल से मनाया जाता है। फूलों की घाटी के बाद उत्तराखंड की यह दूसरी विश्व धरोहर है। भूम्याल मंदिर के प्रांगण में पूजा अर्चना के साथ रम्माण मेले की शुरुआत हुई। लोक कला संस्कृति केंद्र श्रीनगर के डा.संजय पांडे व प्रो.डीआर पुरोहित द्वारा गाए जागरों में रम्माण के पात्रों ने खूबसूरत नृत्य किया। राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान समेत रम्माण के अन्य पात्रों ने 18 ताल में नृत्य के माध्यम से पूरी रामायण का मंचन किया।
मेलो में इसके अलावा गणेश नृत्य, मोर-मोरनी नृत्य, बणिया-बधियान नृत्य, खिलाड़ी नृत्य, राणी-राधिका नृत्य, बुढ़देवा, नृसिंह प्रहलाद व पांडव नृत्य का भी आयोजन किया गया। मेले में आए लोगों ने इस दौरान देवी देवताओं की पूजा अर्चना भी की।
मेले के संयोजक डॉ.कुशल सिंह भंडारी ने बताया कि वैशाखी से ही नृत्य शुरू कर दिए गए थे। मंगलवार की रात्रि को सभी नृत्य संपन्न कराने के बाद बुधवार को रम्माण मेले का समापन हुआ। इस अवसर पर एसबीआइ देहरादून के एडिशनल जनरल मैनेजर ज्योतिष घिल्डियाल, श्री बदरीनाथ धाम के मंदिर अधिकारी भूपेंद्र मैठाणी समेत अनेक विशिष्ट अतिथि भी मौजूद थे।
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