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न शहीदों की याद, न स्वतंत्रता सेनानियों की कद्र

देहरादून। उत्तराखंड में आजादी के परवानों की अब कोई कद्र नहीं रही। सरकारी अमला न स्वतंत्रता सेनानियों की कोई परवाह कर रहा है और न ही किसी को

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शहीदों को याद करने की फुर्सत है। कभी ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानी रामदत्त जोशी को आज अपने क्षेत्र में एक अदद महाविद्यालय के लिए आमरण अनशन का सहारा लेना पड़ रहा है तो उधर, पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की प्रतिमा पर पिछले दो वर्षों से किसी ने श्रद्धांजलि स्वरूप एक फूल तक नहीं चढ़ाया।

बागेश्वर जनपद के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी रामदत्त जोशी अपने जीवन काल में बनलेख में एक महाविद्यालय की स्थापना करना चाहते हैं ताकि क्षेत्र के लोगों को उच्च शिक्षा के लिए दूसरे जनपदों में न भटकना पड़े। जोशी जी ने इसके लिए वर्षों तक जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से लगातार पत्राचार किया। गत वर्ष सरकार ने महाविद्यालय स्वीकृत भी कर लिया, लेकिन फिर इसके निर्माण के लिए हीलाहवाली बरती जाती रही। इसी बीच अब रामदत्त जोशी को पता चला कि स्वीकृत महाविद्यालय को अन्यत्र बनाने की साजिश रची जा रही है तो वे खिन्न हो उठे।

स्वतंत्रता सेमानी ने अंततः जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर चेतावनी दी है कि यदि महाविद्यालय बनलेख से स्थानांतरित किया तो वे आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे। इस दौरान उनके साथ प्रधान पार्वती देवी, प्रेम सिंह भाकुनी, चंद्र सिंह चौहान, लक्ष्मण सिंह कोरंगा, कुंवर सिंह, दर्वान सिंह भाकुनी, मनोज कोरंगा, जयंत कोरंगा, दिनेश भाकुनी, उत्तम सिंह, योगेश मेहता, भूपाल भाकुनी आदि स्थानीय लोग भी शामिल थे। बागेश्वर के जिलाधिकारी  बीएस मनराल का इस संबंध में कहना है कि राम दत्त जोशी की शिकायत से शासन को अवगत कराया जा रहा है।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को भी भूली सरकारः पौड़ीगढ़वाल जिले में पेशावर कांड के नायक स्वतंत्रता सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को भी सरकार ने पूरी तरह भुला दिया है। कोटद्वार तहसील परिसर में स्थापित गढ़वाली की प्रतिमा पर पिछले दो वर्षों से उनकी पुम्य तिथि पर किसी ने फूल चढ़ाने तक की जहमत नहीं उठाई। क्षेत्र के तथाकथित समाज सेवियों को भी उनकी पुण्य तिथि याद नहीं है। किसी समय सरकार ने उनके नाम पर ‘वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना’ भी बनाई थी, लेकिन बाद में यह योजना भी डस्टबिन के हवाले कर दी गई।

पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने एक अक्टूबर 1979 को अंतिम सांस ली थी। उन्हें देश भर में उन्हें उनकी पुण्य तिथि पर याद किया जाता रहा है, लेकिन आज अपने ही घर में उन्हें याद करने वाला कोई नहीं। तहसील परिसर में स्थापित गढ़वाली जी की प्रतिमा स्थल पर हर वर्ष उनकी पुण्य तिथि पर मुख्य श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता रहा है, लेकिन बीते दो साल से उनकी प्रतिमा पर किसी ने एक फूल तक चढ़ाने की जहमत नहीं उठाई। गढ़वाली जी के नाती शैलेंद्र सिंह बिष्ट और उनके परिजन सरकार की इस उपेक्षा से खासे नाराज हैं और कहते हैं कि देश के लिए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

 

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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