महाकवि रहीम दास अकबर काल के विख्यात कवि थे। कबीर के बाद रहीम के दोहे ही आम जनमानस में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए। उनकी रचनाएं समाज को आदर्श जीवन जीने को प्रेरित करती हैं। इनके दोहे बहुत ही प्रेरक और हर विषय पर सटीक टिप्पणी करते हैं। रहीम दास का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खान खाना था। उनका जन्म 7 दिसंबर 1556 में लाहौर में हुआ था। पिता बैरम खां और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। इनके पिता अकबर महान के संरक्षक थे। इनका निधन 1627 को हुआ। रहीम की प्रमुख रचनाएं- रहीम दोहावली, रहीम सतसई, मदनाष्टक, रहीम रत्नावली हैं।
प्रस्तुत हैं रहीम की प्रमुख दस शिक्षाएं –
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति संचहिं सुजान।।
(रहीम कहते हैं कि पेड़ अपने फल खुद नहीं खाता और समुद्र भी अपना पानी खुद नहीं पीता है। इसी प्रकार सज्जन लोग भी हमेशा दूसरों के लिए जीते हैं। परोपकारी लोग सुख संपत्ति भी केवल परोपकार के लिए ही जोड़ते हैं।)
रहिमन जिव्हा बावरी, कह गई सरग- पताल।
आपु तो कहि भीतर गई, जूती खात कपाल।।
(रहीम कहते हैं कि इन्सान को हमेशा सोच समझ कर बोलना चाहिए। यह जीभ तो बावली है, कटु शब्द कह कर मुंह के अंदर छिप जाती है। उसका परिणाम बेचारे सिर को भुगतना पड़ता है, क्योंकि लोग सिर पर ही जूतियां मारते हैं।)
रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डार।
जहां काम आवै सुई कहा करै तलवार।।
(रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु की प्राप्ति पर छोटी को नहीं छोड़ देना चाहिए। हर छोटी- बड़ी चीज का अपना महत्व होता है। जो काम सुई कर सकती है वह तलवार नहीं कर सकती।)
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग।।
(रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति योग्य एवं अच्छे चरित्र का होता है, उस पर कुसंगति प्रभाव नहीं डाल सकती। जैसे जहरीले नाग चंदन के वृक्ष पर लिपटे रहते हैं, लेकिन उसे जहरीला नहीं बना सकते।)
खीरा सिर से काटिये मलियत नमक बनाय।
रहिमन करुए मुखन को चहियत इहै सजाय।।
(रहीम जी कहते हैं कि खीरे को सिर से काट कर वहां नमक मला जाता है ताकि उसकी कड़वाहट को दूर किया जा सके। कड़वे वचन बोलने वालों को भी यही सजा मिलनी चाहिए।)
रहिमन धागा प्रेम का मत तोरो चटखाय।
टूटे से फिर ना मिलै, मिलै गांठ परि जाय।।
(रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का धागा अर्थात् रिश्ता कभी नहीं तोड़ना चाहिए। अगर यह टूट जाता है तो फिर कभी नहीं जुड़ता और अगर जुड़ भी जाए तो भी उसमें गांठ पड़ जाती है।)
रूठे सुजन मनाइये जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिर- फिर पोइये टूटे मुक्ताहार।।
(रहीम कहते हैं कि अगर आपका कोई खास सखा अथवा रिश्तेदार आपसे नाराज हो जाए तो उसे अवश्य मनाना चाहिए। अगर सौ बार रूठे तो सौ बार ही मनाना चाहिए। उसी प्रकार जैसे मोतियों की माला जब-जब भी टूटती है, सभी मोतियों को एकत्रित कर उन्हें वापस धागे में पिरोया जाता है।)
गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढ़ि।
कूपहू ते कहूं होत है, मन काहू को बाढ़ी।।
(रहीम कहते हैं कि जिस तरह गहरे कुंए से भी बाल्टी डाल कर पानी निकाला जा सकता है। उसी प्रकार अच्छे कर्मों द्वारा किसी भी व्यक्ति के दिल में अपने प्रति प्यार उत्पन्न किया जा सकता है। क्योंकि मनुष्य का हृदय कुएं से गहरा नहीं होता।)
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत धाम औ मेह।।
(रहीम कहते हैं कि जिस तरह धरती मां ठंड, गर्मी और वर्षा को सहन करती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी भिन्न- भिन्न परिस्थियों को सहना आना चाहिए।)
वे रहीम नर धन्य है, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।
(रहीम कहते हैं कि जो लोग परोपकार में लगे रहते हैं वो धन्य है। जिस प्रकार मेंहदी लगाने वाले को भी उसका रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारियों को भी लाभ मिलता है।)
प्रस्तुति- एचएनपी सर्विस