महर्षि मनु का धर्मशास्त्र (मनुस्मृति) हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण प्राचीन धर्मग्रंथ है। इसे मानव धर्मशास्त्र या मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है। यह उपदेश के रूप में है जो महर्षि मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया था। इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया। हिन्दुओं के एक वर्ग की मान्यता के अनुसार मनुस्मृति ब्रह्मा की वाणी है। कालांतर में मनुस्मृति को समाज में ब्राह्मणवाद का पोषक मानते हुए विवाद भड़क गया, क्योंकि इसमें शूद्रों और स्त्रियों के प्रति कुछ घोर आपत्तिजनक उपदेश हैं। इसी कारण सबसे पहले डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 25 दिसम्बर, 1927 को महाराष्ट्र के महाड में मनुस्मृति ग्रंथ का दहन किया था। आज भी देश के विभिन्न क्षेत्रों में ‘मनुस्मृति दहन दिवस’ मनाया जाता है।
प्रस्तुत है मनुस्मृति में ब्राह्मणों, स्त्रियों और शूद्रों के लिए दर्ज कुछ आपत्तिजनक उपदेशः
- ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने के कारण धर्मानुसार सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है।
- राजा प्रातः उठकर विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करे और उनके कहे अनुसार ही कार्य करे।
- राजा को ब्राह्मण की सम्पत्ति कभी नहीं लेनी चाहिए, यह एक निश्चित नियम है
- राजा बड़ी- बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और ब्राह्मणों को स्त्री, शय्या, वाहन आदि भोग्य पदार्थ दान दें ।
- जिस प्रकार शास्त्रविधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं, ठीक उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ है।
- स्त्री पुत्री, पत्नी, माता, युवा, व्रृद्धा किसी भी स्वरुप में स्वतंत्र नहीं होनी चाहिए।
- पति अपनी पत्नी को छोड़ सकता हैं, गिरवी रख सकता है और बेच भी सकता है, लेकिन स्त्री को ऐसा कोई अधिकार नहीं।
- असत्य जिस तरह अपवित्र है, उसी तरह स्त्रियां भी अपवित्र हैं।
- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण यज्ञकार्य या दैनिक अग्निहोत्र नहीं कर सकतीं।
- यज्ञ करने वाली या वेदमंत्र बोलने वाली स्त्रियों से ब्राह्मणों को भोजन नहीं लेना चाहिए।
- शूद्रों का मुख्य कर्म ब्राह्मणों की सेवा करना ही है। इसके अतिरिक्त शूद्र जो कुछ करते हैं, सब निष्फल है।
- यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तो उसकी जीभ काट देनी चाहिए।
- शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उसके मुंह और कान में गर्म तेल डलवा देना चाहिए।
- शूद्रों को भोजन के लिए झूठा अन्न, पहनने को पुराने वस्त्र और बिछाने के लिए धान का पुआल देना चाहिए।
- ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन ले, क्योंकि शूद्र का अपना कुछ नहीं है ।
प्रस्तुति- एचएनपी सर्विस-