लोकसभा की कार्यवाही ज्यों ही शुरू हुई,
कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं।
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।।
यदि आज दुष्यंत होते तो वह लिखते….
कैसे कैसे मंजर लोकसभा में आने लगे हैं।
बतियाते बतियाते नेता चिल्लाने लगे हैं।
चिल्लाने ही नहीं अब तो हू हू करने लगे हैं।।
चिल्लाना तो समझ आता भी है, पर हू हू की आवाजें तो जंगलों से ही आती रही हैं। विपक्ष नारे ही नहीं लगा रहा था, हाथों में कई प्रकार के नारे लिखी हुई पट्टिकायें भी लहरा रहा था। एक पट्टिका पर लिखा था…. ‘गरीबों को बचाओ।’ पढ़कर आजादी के बाद के 70 सालों का इतिहास आंखों के सामने घूम गया। भारत के सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 60 करोड़ लोग केवल एक हजार रुपये मासिक पर गुजारा करते हैं। एक हजार रुपये मासिक में कोई भी जी नहीं सकता। वे सब घुट घुट कर मरते हैं ।
भारत विश्व के 12 अमीर देशों में शामिल हो गया। तेजी से बढ़ती अर्थव्यव्स्था, अरबपतियों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ रही है। दूसरी ओर विश्व में सबसे अधिक भूखे लोग भारत में रहते हैं। भुखमरी सबसे अधिक भारत में है। कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या सबसे अधिक भारत में है। विश्व हंगर इन्डेक्स में भारत बहुत नीचे हैं। कई बार भुखमरी की स्थिति में माता- पिता अपने बच्चों को बेचने पर विवश हो जाते हैं। लोकसभा में गरीबों को बचाने का नारा लगाने वाले लम्बे समय तक सत्ता में रहे हैं। ये आंकड़े गवाह हैं कि उन्होंने गरीबों के लिये क्या किया? देश में विकास तो होता रहा, पर सामाजिक न्याय नहीं हुआ। अमीरी चमकती रही और गरीबी सिसकती रही।
देश में इस गरीबी और भुखमरी का सबसे बड़ा कारण बढता हुआ भयंकर भष्टाचार हैं। ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व के सबसे अधिक भ्रष्टाचारी देशों में शामिल हो गया है। उस भ्रष्टाचार पर इतिहास का सबसे बड़ा प्रहार है- नोटबंदी। नोटबंदी का निर्णय कालेधन की शर्मनाक व्यवस्था को समाप्त करने का एक क्रान्तिकारी कदम हैं ।
देश के कुछ नेताओं की पीड़ा वेदना और चिल्लाहट के पीछे एक बहुत बड़ी कड़वी सच्चाई है। कुछ मुट्ठीभर नेताओं को छोड़कर बाकि सभी के पास करोंड़ों का कालाधन था। चुनाव लड़ने वालों के पास कई सौ करोड़ रुपये और चुनाव लडाने वालों के पास कई हजार करोड़ रुपये के नोट रखे थे। बोरियों में ही नहीं कमरे भरे पड़े थे। नरेन्द्र मोदी जी के एक निर्णय से वह सब करोड़ों रुपये रद्दी हो गए। रद्दी से भी बदतर, क्योंकि रद्दी तो अच्छे पैसों में बिक जाती है, पर नोटों की रद्दी ठिकाने लगाने में जोखिम उठाना पड़ेगा। विपक्ष के बड़े- बड़े नेताओं की असली परेशानी करोड़ों रुपयों की बन गई यह रद्दी है। उनके सुनहले सपने मिट्टी में मिल गए।
लोकसभा में मेरे सामने कुछ ऐसे बड़े- बड़े नेता नजर आ रहे थे, जिनको अब चुनाव लड़ना भी कठिन जो जायेगा। उनसे यह पूछा जाना चाहिए…..
तुम आज इतना जो चिल्ला रहे हो।
क्या गम है जिसको छिपा रहे हो।।