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ब्लॉगः ‘फ्री सेक्स’ को कितना जानते हैं आप?

बहुत समय से फ्री सेक्स पर लिखना टाल रहा था, लेकिन आज मेरे एक प्रिय लेखक ने फ्री सेक्स की मजाक उड़ाते हुए लिखा तो लगा कि अब इस पर अपनी समझ से टिप्पणी करी जाय। मैं फ्री सेक्स के पक्ष में हूं, फ्री सेक्स का मतलब क्या है? कुछ लोग समझते हैं फ्री मतलब मुफ्त में सेक्स, लेकिन ऐसा वे बेचारे अंग्रेजी भाषा ना जानने की वजह से समझते हैं।

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कुछ लोग फ्री सेक्स का मतलब समझते हैं- जहां चाहा, जिसके साथ चाहा सेक्स कर लिया। इन लोगों की समझ भी दूषित है इसीलिए वे ऐसा समझते हैं। वास्तव में फ्री सेक्स का मतलब है हर इंसान को अपने शरीर पर अपना अधिकार होने को मान्यता देना। भारत में ऐसा नहीं है।

खास तौर पर महिलाओं के शरीर पर पुरुषों का अधिकार है, लड़की किसके साथ शादी करके सेक्स करेगी, यह पिता तय करता है। लड़की को अपनी शादी, कब करनी है, किसके साथ करनी है, करनी है या नहीं करनी, यह सब फैसले लेने के अधिकार को मान्यता देना ही फ्री सेक्स को मान्यता देना कहलाता है। लेकिन भारतीय समाज के सारे नियम पुरुषों के पक्ष में बनाये गए हैं। इसलिए जैसे ही कोई फ्री सेक्स की बात कहता है, पुरुषों के दिमाग में खतरे की घंटी बजने लगती है कि हमारा अधिकार समाप्त होने वाला है। इसीलिए भारत का पिछड़ा पुरुषवादी समाज फटाफट अपने पक्ष में सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति, परम्पराओं की दुहाइयां देने लगता है।

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फ्री सेक्स एक लोकतान्त्रिक मूल्य है। हम लोग अभी असल में लोकतान्त्रिक बने नहीं हैं, खाली दिखावा करते हैं। अगर आप मानते हैं कि हर बालिग व्यक्ति वोट दे सकता है तो एक बालिग लडकी अपनी शादी का फैसला क्यों नहीं ले सकती? लड़की के अपने फैसले लेते ही आपका सनातन क्यों खतरे में पड़ जाता है?

वैसे तो कहने के लिए भारत के महाकाव्यों में फ्री सेक्स की कहानियां भरी पड़ी हैं। स्वयंवर का अर्थ ही अपनी मर्जी से वर खोजना होता है। तो फ्री का अर्थ है स्वतन्त्रता और सेक्स का अर्थ है अपने शरीर, प्रजनन और शादी के बारे में स्वतंत्र इंसान के रूप में फैसले लेने की आजादी का अधिकार। हर इंसान को सेक्स के बारे में फैसला लेने का अधिकार होना ही हमारे समाज के सभ्य होने की निशानी है। दूसरे को अपना गुलाम बना कर उसे फैसला नहीं लेने देना पिछड़ापन है। लड़कियों को अपने फैसले लेने दीजिये, आप कब तक उनके सर पर बैठे रहेंगे?

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Himanshu Kumar

Himanshu Kumar is a famous social worker and a writer. Presently he is working for the triable people of India. He also writes regularly for different magazines.

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