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पहाड़ी संस्कृति में प्रेम गाथाओं की भरमार

देहरादून। पहाड़ी संस्कृति में प्रेम गाथाओं, प्रेम प्रसंगों और प्रेम गाथाओं की भरमार रही है। उत्तराखंड में भी बात

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चाहे राजुला-मालूशाही की हो या तैड़ी तिलोगा की या फिर जीतू बगड्वाल की। इन सभी प्रेम गाथाओं ने सदियों से पहाड़ी मानसपटल पर अपना प्रभाव जमा रखा है। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली है जीतू बगड्वालकी प्रेम गाथा को, जो आज भी यहां की समृद्ध लोक संस्कृति का हिस्सा है। संवेदना समूह उत्तरकाशी के कलाकारों ने यहां आयोजित चार दिवसीय नाट्य समारोह के दौरान जीतू बगड्वाल की प्रेम गाथा को अपने उत्कृष्ट अभिनय के द्वारा बखूबी साकार किया।

कथानक के अनुसार गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था। अपनी तांबे की खानों के साथ उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहन सोबनी को लेने उसके ससुराल रैथल पहुंचता है। बहाना अपनी प्रेयसी भरणा से मिलने का भी है, जो सोबनी की ननद है। दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। जीतू बांसुरी भी बहुत सुंदर बजाता है। एक दिन जब वह रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजा रहा था तो वहां बांसुरी की मधुर स्वर लहरियों पर आछरियां (परियां) खिंची चली आईं। वह जीतू को उसके प्राण हर कर अपने साथ ले जाने के लिए जिद करने लगीं। जीतू ने उन्हें वचन दिया कि वह अपनी इच्छानुसार उनके साथ चलेगा। आखिरकार वह दिन भी आता है, जब जीतू को परियों के साथ जाना पड़ा। जीतू के जाने के बाद उसके परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा। जीतू के भाई की हत्या हो गई। ऐसे समय में जीतू अदृश्य रूप में परिवार की मदद करने लगा। राजा जीतू की अदृश्य शक्ति को भांपकर ऐलान करता है कि आज से जीतू को पूरे गढ़वाल में देवता के रूप में पूजा जाएगा।

नृत्य नाटिका में जीतू के पात्र को गोविंद सिंह बिष्ट ने जीवंत किया। अन्य पात्रों में गंगा डोगरा, अंजू, सुरेंद्र नौटियाल, धनपाल, रोशन, सुरेंद्र पुरी, रेनू, प्रीति शाह, मनवीर रावत, राजेश जोशी, हरदेव पंवार व उत्तम शामिल थे। जयप्रकाश राणा लिखित नृत्य नाटिका का निर्देशन डॉ.अजीत पंवार ने किया।

जातिगत द्वंद रौला भौला– समारोह की अंतिम प्रस्तुति थी नेशनल रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी के कलाकारों द्वारा मंचित कुमाऊंनी नाटक ‘रौला भौला’। इस नाटक कुमाऊं की लघिया घाटी व लघौन धुरा क्षेत्र में निर्वासित विभिन्न जातियों के अंतरद्वंद को दर्शाया गया है। कहानी शुरू होती है ऐसी दलित बस्ती से, जिसे ऊंची जाति के लोगों ने खुद से दूर जंगल के नजदीक ऊंची पहाड़ियों पर बसने को मजबूर कर दिया और स्वयं नदी तट की उपजाऊ भूमि पर रहने लगे हैं। दलित परिवार के एक लड़के ने ऊंची तालीम हासिल की है। उसके पास एक ट्रांजिस्टर है, जिस पर वह समाचार सुनता है और पूरे गांव को दुनिया जहान की जानकारी देता रहता है। इसी क्रम में एक दिन वह भारी बरसात की सूचना देने निचली घाटी में बसे लोगों के पास पहुंचा, लेकिन ऊंची जात के अभिमान से ग्रसित लोगों की समझ में यह बात नहीं आई। वे लड़के को मार भगाते हैं। बरसात धीरे-धीरे गति पकड़ने लगी है। नदी-नाले उफान पर हैं। निचले इलाकों में पानी भरने लगा है। तब हरिजनों का टोला ही ऊंची जात वालों का सहारा बना। सबने उनके पास शरण ली।

इसमें नाट्य निर्देशन था भूपेंद्र सिंह देव का, जबकि उमेश चौबे, राजेश, दिनेश व दीपक पुजारी ने तकनीकी सहयोग किया। मुख्य पात्रों में भूपेंद्र सिंह, रश्मि आर्य, दिनेश, दीपा बिष्ट, सूरज, रोहित, मनोज, आशा फत्र्याल, गोकुल चौबे व उमेश चंद्र शामिल थे।

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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