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ब्लॉगः जिस दिन मंडी में राजशाही का अंत हुआ..

…एक बुजुर्ग मेरे दादा जी से मंड्याली में कह रहा था, “मियां जी, भला ग्वालुआं बगैर भी कदी डांगरे चरे ? राजशाही के अतिरिक्त कोई दूसरी शासन व्यवस्था भी हो सकती है, ये उस समय लोगों की कल्पना के बाहर था।

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जैसा कि आप सबको पता ही होगा आज के हिमाचल प्रदेश का गठन 1948 में हुआ था। उससे पहले यहां छोटी बड़ी पच्चीस या छब्बीस रियासतें थीं, जिनपर राजाओं का शासन था। इन सब रियासतों का स्वतंत्र भारत में विलय करके नए राज्य हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया था।

बाकी स्थानों पर ऐसा कैसे हुआ था, यह तो मुझे मालूम नहीं है, पर मंडी रियासत के विलय की मुझे अच्छी तरह याद है। हालांकि मेरी उम्र तब नौ साल की भी नहीं थी। उस वक्त मंडी में राजा जोगिन्द्र सेन का शासन था।

मेरे पिता मियां नेतर सिंह राजा के निजी स्टाफ में काम करते थे। वे राजा के निजी सहायक किस्म के कर्मचारी थे। हमेशा राजा के साथ रहते, डिक्टेशन भी लेते थे, सफ़र में राजा के निजी खर्च का लेन देन भी किया करते थे। निजी स्टाफ के लोग पैलेस में बने स्टाफ क्वार्टरों में रहा करते थे।

मेरे दादा जमादार गौरी शंकर ने भी राजा के निजी स्टाफ में ही नौकरी की थी। असल में ये राजा काफी चतुर किस्म के शासक हुआ करते थे। उन्होंने अपनी रियासत में कुछ वफादार स्वामीभक्त परिवार चिन्हित किये होते थे। राजमहल से सम्बंधित कामों के लिए इन्हीं परिवारों से लोग रखे जाते थे। शायद इसलिए ताकि राजा और उसके परिवारजनों को कोई खतरा ना हो और न ही राजमहल में होने वाली बातें बाहर जनता तक पहुंच सके। मेरे दादा जो बातें सुनाया करते थे, उससे अंदाज लगता था ये कर्मचारी अपने राजा के लिए बहुत ही समर्पित और वफादार हुआ करते थे।  

 

मुझे तारीख तो याद नहीं है पर यह अच्छी तरह याद है कि उस दिन स्टाफ क्वार्टरों का माहौल काफी तनावपूर्ण था। सब लोग गुमसुम थे और आपस में धीमी आवाज में बात कर रहे थे कि आज मंडी में राजा का राज खत्म हो जाएगा। जो सीधे सादे पुराने लोग थे, वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि अब क्या होगा। उनका सोचना था कि राजा के राज के समाप्त होने का मतलब था अराजकता। एक बुजुर्ग मेरे दादा जी से मंड्याली में कह रहा था, “मियां जी, भला ग्वालुआं बगैर भी कदी डांगरे चरे ?” (मियां जी कभी बिना ग्वाले के भी पशु चराए जा सकते हैं?) राजा के राज के अतिरिक्त कोई दूसरी शासन व्यवस्था भी हो सकती है, ये उस समय लोगों की कल्पना के बाहर था।

मेरे दादा जी की एक चिंता और भी थी। वे कह रहे थे कि आज जरूर कुछ अनहोनी होगी। वे बता रहे थे कि मंडी के राजाओं को दसवें सिख गुरु का वरदान है कि मंडी में राजाओं का शासन हर हाल में चलता रहेगा और यदि कोई मंडी को लूटेगा, तो उस पर आसमान से गोले बरसेंगे। मेरे दादा जी की नजर में राजा को हटा कर मंडी का शासन अंग्रेज चीफ कमिशनर को सौंप देना मंडी को लूटना नहीं तो और क्या था? यहां मैं यह भी यह बता दूं कि जब हिमाचल का गठन हुआ तो प्रशासनाध्यक्ष चीफ कमिशनर को बनाया गया था और हिमाचल का पहला चीफ कमिश्नर एक अंग्रेज अधिकारी-  ई. पी. मून नियुक्त हुआ था।

मंडी रियासत के भारत में विलय का एक सांकेतिक सा समारोह भी हुआ था, पर यह पब्लिक समारोह नहीं था। वहां कौन कौन लोग उपस्थित थे, इसका ना तो मुझे पता ही था और ना ही इन बातों की समझ थी। समारोह पैलेस के एक कोने में, जहां मंडी रियासत का झंडा लगा होता था, हो रहा था। जब राजा के राज की समाप्ति घोषित की गयी तब पैलेस में लगे ध्वज स्तम्भ पर मंडी रियासत का झंडा नीचे किया गया और भारत का राष्ट्रीय तिरंगा झंडा ऊपर कर दिया गया। उस समय मंडी रियासत की सेना के बैंड ने धुनें भी बजाई थीं।

स्टाफ क्वार्टरों के एक कोने से पैलेस का झंडा दिख जाता था। स्टाफ क्वार्टरों में रह रहे कुछ मर्द और औरतों ने जिनमें हम बच्चे भी शामिल थे, डरते हुए छुप कर झाड़ियों की ओट से झंडों की यह अदला बदली देखी। सब कुछ क्षणों में शांतिपूर्वक हो गया, कोई अनहोनी नहीं हुई।

मेरे दादा जी, जिनकी उम्र उस समय 65 वर्ष की रही होगी, बहुत हैरान थे। उन्हें पक्का विश्वास था कि उनके राजा की गद्दी कोई नहीं छीन सकता। पर ऐसा हो गया और मंडी रियासत में पांच सौ वर्षों से चला आ रहा राजाओं का राज वगैर किसी विघ्न के समाप्त हो गया।

डॉ. चिरंजीत परमार

Dr. Chiranjit Parmar is a worldwide famous scientest. He pursued his Ph.D. in Horticulture from the University of Udaipur in 1972, have been working on wild growing and lesser-known fruits since 1972; most widely traveled fruit scientist of India, currently compiling Fruitipedia, an online encyclopedia of the edible fruits of the world.

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