बद्दी। एशिया भर में फार्मा हब के रूप में नाम कमा चुका हिमाचल प्रदेश का दवा उद्योग तेजी से अधोपतन की ओर अग्रसर है। प्रदेश में बनी दवाइयां राष्ट्रीय-
हिमाचल में 1020 फार्मा उद्योग हैं। इनमें 537 उद्योगों के पास ओरिजनल (मुख्य निर्माता कंपनी), 418 के पास लोन (दूसरे उद्योगों में निर्माण) और 65 के पास कोपप (एक्सपोर्ट) लाइसेंस हैं। सेंटर ड्रग्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन और डायरेक्टर जनरल आफ हेल्थ सर्विसेस की इस वर्ष की सेंपलिंग रिपोर्ट के अनुसार देश भर में हिमाचल प्रदेश की दवाइयों के सेंपल सबसे अधिक फैल हुए हैं। गत जनवरी 2013 से लेकर सितंबर 2013 तक देश भर में करीब 104 प्रकार की दवाओं की गुणवत्ता परखी गई। इसमें फेल होने वाले सर्वाधिक 23 सेंपल हिमाचल के दवा उद्योगों के हैं। इसके बाद असम, चेन्नई और कोलकाता से लिए गए सेंपल फेल हुए हैं। वहीं उत्तराखंड के दवा उद्योगों के 12, जम्मू के 10 और महाराष्ट्र के 07 सेंपल फेल हुए।
फेल सेंपलों में सर्वाधिक मामले दवा के साल्ट का निर्धारित मात्रा में न होना, डेजिग्नेशन टेस्ट का अभाव, मैटर रिपोर्ट का अभाव, भार में असमानता के हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इसका कारण दवा बनाते वक्त मास्टर फार्मूला सही तरीके से लागू न करना है। यह तकनीकी रूप से दक्ष हाथों में कमान न होना या बैच के समय कोताही के हो सकते हैं।
देश में दवा उत्पादन (मैन्यूफैक्चरिंग कास्ट) की मार्केट में 35 फीसदी शेयर हिमाचल के उद्योगों का है। उद्योग संघ के दावे के अनुसार देश में करीब 25 हजार करोड़ के कारोबार में 9 हजार का दवा कारोबार हिमाचल से ही होता है। माना जा रहा है कि यदि सरकार ने कड़े पग नहीं उठाए तो हिमाचल प्रदेश की यह प्रतिष्ठा भविष्य में कायम नहीं रहेगी।
हिमाचल प्रदेश दवा निर्माता संघ के अध्यक्ष एचएन सिंघला ने भी कहते हैं कि दवाओं के सबसे अधिक सेंपल हिमाचल के फेल हो रहे हैं, जो वास्तव में ही एक गंभीर मामला है। उन्होंने कहा कि देश भर में एक समान सेंपलिंग को लेकर ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया को मांग पत्र सौंपा जा चुका है, जिसमें आग्रह किया गया है कि सेंपल फेल होने के बाद उद्योग के कंट्रोल सेंपल को लगातार चेक किया जाए।
प्रदेश में बीबीएन, पांवटा साहिब, कंडवाल (कांगड़ा), सोलन, गुल्लरवाला, झाड़माजरी और कालाअंब आदि में स्थापित विभिन्न दवा कंपनियों की जिन दवाइयों के सेंपल फेल हुए हैं उनमें- टेलिमेस्टिरिन, स्पेसडोर, पायरिक्योर (पीसीएम), वाइबलटोन, डीयके, एलफाडोल, क्लेवमैक्स, रैबी, मैगारेब, आफलेक्सोन, आइब्रोप्रोफेन, सेफपोडोक्साइम, डिक्लोफेम, फोक्टैब, वेक्मि डीटी, वीसिन, अमिकर 500 (इंज), क्लोक्सा500 (कैप), सोरबाइड, आईफा प्लस, हाइड्रोकोर्ट, वी डाक्स और जेंटा (इंज) शामिल हैं।
हाल ही में बीबीएन क्षेत्र के भटोलीकलां और बरोटीवाला में स्थित दो फार्मा उद्योगों से पंजाब पुलिस ने बड़े पैमाने पर नशे में इस्तेमाल होने वाला कैमिकल पाउडर बरामद किया है। प्रदेश में उभरते दवा उद्योग के भविष्य के लिए यह स्थितियां बहुत घातक साबित हो सकती हैं।
प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर नवनीत मरवाह से इस संबंध में बात की गई तो उनका कहना था कि डायरेक्टर जनरल आफ हेल्थ सर्विसेज से दवा नियंत्रक प्राधिकरण को वार्निंग मिलती रहती है। इस पर प्राधिकरण उद्योगों में समय समय पर कार्रवाई करता रहता है। सेंपलिंग हर माह ली जाती है। प्राधिकरण अपनी तरफ से पूरी तरह सचेत है।