कुल्लू। हिमाचल प्रदेश में कोरोना की मार से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा। पर्यटन, परिवहन से लेकर हर कारोबारी क्षेत्र अभी तक कराहता हुआ दिखाई देता है। समय के साथ साथ कुछ क्षेत्रों में मामूली सुधार भी देखने में आ रहा है, लेकिन लोहे, लकड़ी, बांस, मिट्टी, सोनी-चांदी आदि धातुओं की पारंपरिक शिल्पकारी- कारीगरी पर कोरोना की जो मार पड़ी हैं, उसका कोई निदान निकट भविष्य में नजर नहीं आ रहा।
राज्य भर में पारंपरिक शिल्पकारी की सैकड़ों छोटी-बड़ी दुकानें बंद हो गई हैं। हजारों हस्त शिल्पकार एवं कारीगर बेरोजगार हो गए हैं। अकेले जिला कुल्लू में शिल्पकारों की कम से कम 100 दुकानें मंदी के चलते बंद हो गई हैं।
सैकड़ों कारीगर, जो लोहे के औजार, लकड़ी की सजावटी वस्तुएं, मिट्टी के बर्तन बनाकर लोगों को बेचते थे, अब बेरोजगार हैं तथा परिवार का पेट पालने के लिए जगह-जगह दिहाड़ी मजदूरी करने को विवश हैं। अनेक कारीगरों को गांवों में मनरेगा का सहारा लेना पड़ा है तो कुछ सेब के बागीचों में मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। कुछ खेतीबाड़ी में जुटे हैं।
देवी- देवताओं के मोहरे भी बनाते हैं शिल्पकारः जिला कुल्लू और मंडी में देवी-देवताओं के रथ में लगने वाले मोहरों को यही शिल्पकार तैयार करते हैं। सोने और चांदी की शिल्पकारी में ये निपुण होते हैं। लकड़ी के किल्टे, टोकरी, लोहे के औजार, लकड़ी की सजावट की वस्तुएं भी मार्केट में खूब बिकती हैं। पर्यटक भी इन उत्पादों को पसंद करते हैं।
प्रगतिशील विश्वकर्मा कल्याण सभा के प्रदेशाध्यक्ष उदय डोगरा कहते हैं कि सरकार ने कोरोना के दौरान हर क्षेत्र के लिए राहत पैकेज का एलान किया। ये शिल्पकार भी पिछले दो वर्षों से सरकार की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं, लेकिन अभी तक प्रशासन और सरकार ने इनकी कोई मदद नहीं की।
उदय डोगरा ने कहा कि इन कारीगरों का यह पारंपरिक धंधा है, जो अब बंद हो गया है। इनके उत्पादों की समाज को जरूरत होती है। यह आम घरों में इस्तेमाल होते हैं। सरकार को चाहिए कि वह बेरोजगार हो चुके इन हस्त शिल्पकारों की मदद करे।