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…आप बहुत याद आएंगे भाटिया जी, बहुत

एक गांव, जिसमें हमारा बचपन होता है और एक घर, जिसे नौकरी में रहते या सेवानिवृत्ति के बाद हम बनाते हैं। कुछ खेत और उनके बीच से बची गुजरती पगडंडियां, जो हमारी सबसे खूबसूरत संपत्ति होती है। कुछ लोग, जो आपको बहुत प्यार करते हैं। कुछ और लोग, जो बिना कारण आपसे नफरत और ईर्ष्या करते हैं। कुछ किताबें, जिन्हें आप आजीवन सांजते, लिखते छपवाते रहते हैं। कुछ कपड़े, एक दो जोड़ी जैकेट और दो चार पेन, जो आपके बेड रूम में किसी अलमारी और किसी कोने में पड़े रहते हैं। एक छाता जो धूप या बारिश के लिए आप दरवाजे के पीछे टांग रखते हैं। कुछ पैसे, जिन्हें मुसीबत के लिए आप बैंक में सुरक्षित रख देते हैं। बहुत सी पोस्टें और अनगिनत कॉमेंट, जो हमारी फेस बुक वाल पर डिलीट न होने तक चिपके रहते हैं। कुछ अपने जो आपके जाने के बाद चुपके चुपके आपकी यादों के साथ रोया करते हैं। …शायद हम लिखने पढ़ने वालों के पास इतनी सी संपत्ति होती है…..पर साथ कुछ नहीं ले जा पाते।

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कल अपने गांव आया तो बद्री सिंह भाटिया जी के गांव के सामने सड़क पर काफी देर खड़ा रहा और उनके पुराने और बहुत मेहनत से बनाए नए घर को देखता रहा। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने नया घर बनाया था, बहुत प्यार से। उनका शिमला में मन ही नहीं लगता था। सड़क के साथ गांव के सामने उनकी काफी जमीन है, जिसके संवारने में उनका अधिक समय निकलता। मैं जब शिमला से गांव आता तो कई बार वे हाथ में दराट लिए वहीं मिल जाते। रास्ते से उन्हें फोन करता। जब कभी रात को घर आना होता तो भी उनके गांव के सामने से उन्हें फोन कर लिया करता। कभी- कभी उनके घर जाकर चाय पी लेते।

मेरे और उनके गांव के बीच सात किलोमीटर का अंतर है। उनका गांव ग्याना जिला सोलन की अर्की तहसील में हैं और मेरा जिला शिमला का पहला गांव उप तहसील धामी में। अंबुजा सीमेंट की जो मुख्य पत्थर की खानें हैं यानि कशलोग माइन्स वो भाटिया जी के घर के साथ ही हैं। अब नई खानों से जो पत्थर दाड़ला जाता है, उसकी लंबी कन्वेयर उन्हीं के घर गांव के ऊपर से जाती है। उसका शोर रातदिन परेशान करता है। साथ ही जब ब्लास्ट होते हैं तो घर के दरवाजें खिड़कियां हिलने लगते हैं। यहां तक कि घरों में दरारें देखी जा सकती हैं।

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भाटिया जी इस शोर का बार बार न केवल जिक्र करते, बल्कि अपनी कहानियों उपन्यासों में उन्होंने बहुत शिद्दत से इसे दर्ज भी किया है। उनका उपन्यास डेंजर जोन उसी सीमेंट फैक्ट्री के भयानक शोर और प्रदूषण के साथ लोगों की तकलीफों का लेखा जोखा है। और भी कितनी ही कहानियां…।

हम दोनों ने शिमला में नौकरी करते हुए लंबा समय साथ गुजारा है। जब 90 के दशक में मैंने देश भर की लघु पत्रिकाओं को शिमला मंगवा कर बेचना शुरू किया तो वे एकमात्र साथी थे, जिन्होंने उसमें बढ़चढ़ कर सहयोग किया। कितनी गोष्ठियों में हमने प्रदेश व प्रदेश के बाहर साथ साथ भाग लिया। गिरिराज और हिमप्रस्थ में जब वे संपादक थे तो उन्होंने प्रदेश के नवोदित लेखकों को जोड़ा, उन्हें लिखना सिखाया और छापा भी। वे लेखक के साथ बहुत अच्छे संपादक थे। उनमें ऊर्जा की कोई कमी नहीं थी। हम योजना बनाते ही रह जाते और उनकी एक या दो किताबें छप कर आ जाती। निरंतरता ही निरंतरता।

पिछले कुछ सालों से वे बेटी के पास दिल्ली ज्यादा रहने लगे थे। कारण अस्वस्थता थी। शुगर, किडनी की तकलीफ के साथ उनकी आंखों की तकलीफ भी बढ़ी थी। बावजूद इसके वे अंतिम समय तक फेसबुक पर सक्रिय रहे। इतना ही नहीं अलविदा कहने से एक सप्ताह पहले जैसे एक पोस्ट लगाकर और कई अंतरंग मित्रों को व्हाट्सएप भेज कर उन्होंने इस विदाई के संकेत जैसे दे दिए थे। मेरी पांच दिन पहले जब उनसे दिल्ली बात हुई तो उन्होंने अपनी व परिवार की अस्वस्थता के बारे में काफी बात की थी, फिर भी लगा ही नहीं कि उनकी स्थिति इतनी बिगड़ जाएगी। बात करने में वही जोश, वही ऊर्जा और वही जानी पहचानी हंसी…..इसी हंसी में शायद मौत भी छुपी रहती होगी…?

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कितनी यादें हैं उनके साथ…कितनी बातें…..कितना साथ…..कितनी बैठकें….और हजारों लाखों चाय की चुस्कियां…..शिमला मॉल के साथ मिडल बाजार में जिस चाय की दुकान में अक्सर मैं, कुल राजीव पंत, आत्मा रंजन जी, नेम चंद जी, अश्वनी और मदन जी चाय पीते थे उसका नाम “फटाफट” टी स्टाल उन्होंने ही दिया था, क्योंकि इस दुकान में आप चाय का गिलास खाली करने के बाद नहीं बैठ सकते। रिट्ज सिनेमा में मेरे दफ्तर में तो पांच बजे के बाद पता नहीं कितनी गोष्ठियों जमती थी, जहां सभी इकट्ठे हो जाते।

यही कुछ रह जाता है शेष…..गांव आते उनके घर के सामने अब जब भी रुकूंगा तो महज गांव होगा, उसके बीच चुपचाप सहमा सा उनका घर, उदास खेत, रोती पगडंडियां और ऊपर से चीखती चिल्लाती फैक्ट्री की कन्वेयर। फोन करूंगा पर कोई नहीं सुनेगा और एक दिन हम भी निकल जायेंगे उसी यात्रा पर।

…आप बहुत याद आएंगे भाटिया जी, बहुत।

(विख्यात लेखक एस. आर. हरनोट अपने दिवंगत  लेखक मित्र बद्री सिंह भाटिया को याद करते हुए। )

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एचएनपी सर्विस

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