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देहरादून (अल्मोड़ा)। मनरेगा किस चिडिय़ा का नाम है….? जॉब कार्ड क्या होता है…? दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों को इसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम। केंद्र सरकार की देश भर में लोकप्रिय मानी जाने वाली इस महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना की लौ अल्मोड़ा जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में अभी तक भी नहीं पहुंच पाई है। देश भर में यह योजना वर्ष 2008 से चल रही है, लेकिन यहां दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में गरीब लोगों को अभी तक भी इसके तहत काम मिलना तो दूर जॉब कार्ड तक उपलब्ध ही सके हैं । ऐसे में यदि ग्रामीणों के बीच कोई अफसर योजना की चर्चा भी करता है तो ग्रामीणों का सबसे पहला सवाल सही होता है कि..साहब! यो जॉब कार्ड कि छू।
सरकारी अमले की लापरवाही के चलते पिछले चार वर्षों में यहां इस महत्वाकांक्षी योजना को लागू करने के लिए प्रारंभिक प्रक्रिया तक पूरी नहीं हो पाई है। यह हाल जिले के करीब सभी विकास खंडों का है, जहां ग्रामीणों को अभी तक जॉब कार्ड तक मुहैया नहीं कराए जा सके हैं ।
मीडिया कर्मियों ने ग्रामीणों से ही इस योजना के बारे में जानकारी लेनी चाही। भैंसियाछाना में ग्राम सभा बूंगा, गांव तोक तल्ला बिलवाल के वासी दान सिंह कहते हैं कि मनरेगा के माध्यम से रोजगार की बात तो कही गई थी, लेकिन अभी तक उन्हें जॉब कार्ड ही नहीं मिल पाया है। ग्रामीण महेंद्र सिंह का कहना था कि कई बार विकास खंड तक जॉब कार्ड न मिलने की शिकायत की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। गरीब काश्तकार गोपाल सिंह को पता ही नहीं है कि आखिर मनरेगा और जॉब कार्ड क्या बला है। पार्वती देवी कहती है कि मनरेगा क्या चीज है, उसे नहीं मालूम। उसका कहना था कि गांव में ऐसी किसी योजना के तहत कोई काम मिला। सरकार कुछ भी कहे, दो जून की रोटी के लिए खुद ही जुगाड़ करना पड़ता है।
अल्मोड़ा के मुख्य विकास अधिकारी सी. रविशंकर का इस बारे में कहना है कि जॉब कार्डों का वितरण न होना एक गंभीर लापरवाही है। पूरे मामले की जांच कराई जाएगी। अगर जॉब कार्ड वितरण में अनियमितता पाई गई तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
इस बारे में अल्मोड़ा के खंड विकास अधिकारी सुरेंद्र सिंह बिष्ट से बात की गई तो उनका कहना था कि पूरे विकास खंड में ग्रामीणों के 4668 जॉब कार्ड बनाए गए हैं, जिन्हें वितरित करने की जिम्मेदारी ग्राम विकास अधिकारियों को दी गई है। जॉब कार्ड आगे क्यों वितरित नहीं किए गए, इसकी जांच की जाएगी।