नई दिल्ली। खर्च करने के मामले में भारतीय गांव तेजी से शहरों को पछाड़ते जा रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक दो दशक पहले देश में शुरू हुए आर्थिक सुधारों के
ग्रामीण भारत की आबादी को देखते हुए उत्पाद और सेवाओं की खपत हमेशा ही ज्यादा रही है, लेकिन पिछले दशक में शहरी भारत में खपत की दर बढऩे से यह अंतर कम हो गया था। क्रिसिल के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में तेजी से बढ़ रही खपत को बरकरार रखने के लिए ये जरूरी है कि वहां सरकारी रोजगार योजनाओं जैसे कम अवधि वाले उपायों की जगह लंबे समय तक टिकने वाले रोजगार अवसरों को बढ़ावा दिया जाए।
गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के बढ़ते अवसर
गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के बढ़ते अवसरों और मनरेगा जैसी सरकारी रोजगार योजनाओं के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में आमदनी बढ़ी, जिससे इस क्षेत्र में खपत को बढ़ावा मिला।
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के आंकड़े दिखाते हैं कि वर्ष 2004-05 से 2009-10 के दौरान ग्रामीण निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों की तादाद में 88 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई, जबकि कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या चौबीस करोड़ नौ लाख से घटकर बाइस करोड़ नौ लाख रह गई। काम की तलाश में शहर गए लोगों ने वहां ढांचागत और निर्माण क्षेत्रों में काम किया और गांवों में रह रहे अपने परिवारों को ज्यादा पैसा भेजा। इससे भी खपत बढ़ी।
अब हर दो में से एक ग्रामीण परिवार में एक मोबाइल फोन है। यहां तक कि बिहार और ओडिशा जैसे भारत के सबसे गरीब राज्यों में भी हर तीन में से एक परिवार में एक मोबाइल फोन है। वर्ष 2009-10 में लगभग 42 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में टेलिविजन था, जबकि पांच साल पहले ये आंकड़ा 26 प्रतिशत था। इसी तरह वर्ष 2009-10 के दौरान 14 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में दोपहिया वाहन था, जोकि वर्ष 2004-05 की तुलना में दोगुना है।
क्रिसिल में वरिष्ठ निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री धर्माकीर्ति जोशी कहते हैं, ”ग्रामीण भारत में विकास दर को बनाए रखने के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका अहम होगी ताकि भारत को ग्रामीण इलाकों में नौकरीशुदा लोगों की बढ़ती आबादी का फायदा मिले। निजी क्षेत्र द्वारा ग्रामीण इलाकों में रोजगार के नए मौके मुहैया कराने के लिए सरकारी नीतियां महत्वपूर्ण होंगी।”
खर्चा करने में ग्रामीणों ने शहरियों को पछाड़ा
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