देहरादून। उत्तराखंड में नोटबंदी की मार का सबसे अधिक प्रभाव यहां के सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों पर पड़ा है। पहाड़ी क्षेत्रों में इन उद्योगों के कारोबार में 50 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की जा चुकी है तथा आने वाले समय में बड़ी संख्या में उद्योगों के बंद होने का खतरा सर पर मंडरा रहा है। हजारों कामगारों के समक्ष दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
कुमाऊं क्षेत्र के छह जिलों में 28,951 सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग हैं। इनके उत्पादन, आर्डर और सप्लाई पर नोटबंदी का बहुत बुरा असर पड़ा है। उत्पादन 50 फीसदी तक घट गया है। इन उद्योगों की आर्थिक स्थिति पिछले एक महीने में ही इतनी दयनीय हो गई है कि कामगारों को वेतन देने के भी लाले पड़ गए हैं। पहले से तैयार माल के लिए भी आर्डर नहीं आ रहे हैं।
घोर आर्थिक तंगी के चलते इन उद्योगों ने बड़े पैमाने पर कामगारों की छंटनी शुरू कर दी है। दिहाड़ी पर काम कर रहे आधे से अधिक मजदूरों को निकाल दिया गया है। बेरोजगार हुए मजदूरों के सामने दो वख्त की रोटी का संकट पैदा हो गया है। इस संबंध में जब कुछ सूक्ष्म एवं लघु उद्यमियों से बात की तो सभी ने एक स्वर में कहा कि यह सब नोटबंदी का असर है।
यही नहीं, राज्य के बड़े उद्योगों में भी दिहाड़ीदार मजदूरों की छंटनी का सिलसिला शुरू हो गया है। इन कंपनियों में नियमित और संविदा पर कार्य कर रहे कर्मियों पर फिलहाल आंच नहीं आई है, लेकिन फिर भी वे सभी आशंकित हैं।
लोहाघाट में शीतला फल संरक्षण सहकारी समिति का प्रतिवर्ष 10 से 12 लाख का टर्नओवर है। यहां जैम, जैली और अचार आदि बनाए जाते हैं। अक्तूबर माह में समिति ने दो लाख का माल तैयार किया। नवंबर माह में नोटबंदी के बाद यह घटकर एक लाख से भी कम हो गया है। समिति के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह ने कहा कि जूस बनाने के लिए कच्चा माल खरीदने को पैसे नहीं हैं। नए नोट मिल नहीं रहे। दुकानदार भी माल नहीं खरीद रहे हैं। उनका कहना है कि यहां पहले 16 लोग काम करते थे, लेकिन अब छह लोगों को हटाना पड़ गया है।
कनलगांव में बेकरी उद्योग चला रहे खिलानंद जोशी का भी यही कहना था। वह अपने तीन भाइयों के साथ यह काम करते हैं। नोटबंदी के बाद तो जैसे उनकी कमर ही टूट गई। हर महीने में 70 हजार रुपये का माल बाजार में जाता था। इससे वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे, लेकिन नोटबंदी के बाद तो कुछ दिन माल बिका ही नहीं। अब कुछ माल बाजार में जाने लगा है, लेकिन अभी भी 60 प्रतिशत ही काम हो रहा है।
पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी स्थित बूंगा के उद्यमी कालू राम ने कहा कि- “जौलजीवी मेले में पहले हमारा सामान अच्छा खास बिकता था। नोटबंदी के बाद दो दिन मेले में गया, लेकिन माल नहीं बिका तो वापस आ गया। मुनस्यारी में पर्यटक भी नहीं आ रहे हैं। स्थानीय लोग भी अभी नया माल नहीं खरीदना चाहते हैं। प्रतिवर्ष मैं जाड़ों के सीजन में दो लाख से अधिक का सामान बेचता था, लेकिन इस बार पांच हजार का भी नहीं बिका।”
उद्योग विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अनुपम द्विवेदी कहते हैं, “नोटबंदी के बाद विभाग ने पूरे प्रदेश में सर्वे कराया। इसका सूक्ष्म, लघु उद्योगों पर खासा असर पड़ा है। पहाड़ी जिले तो काफी प्रभावित हुए हैं। इनके उत्पादन, सप्लाई और डिमांड तीनों पर असर पड़ा है। नोटबंदी का असर लंबे समय तक रहने की उम्मीद है।”