देहरादून/नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को शक्ति परीक्षण का मौका दे दिया है। अदालत के आदेश पर हरीश रावत 10 मई मंगलवार को सुबह 11 बजे से दोपहर बाद एक बजे तक विधानसभा में शक्ति परीक्षण करेंगे। राज्य में इन दो घंटों में राष्ट्रपति शासन हटा लिया जाएगा। एक बजे के बाद राष्ट्रपति शासन फिर से लागू हो जाएगा। बागी विधायक शक्ति परीक्षण में भाग नहीं ले सकेंगे।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह पर आधारित खंडपीठ ने शुक्रवार को इस संबंध में फैसला सुनाया। इसके साथ ही उत्तराखंड में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। देहरादून में कांग्रेस और भाजपा विधायकों की बैठकें शुरू हो गई हैं।
न्यायालय ने किसी पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त की निगरानी में शक्ति परीक्षण कराने का निर्देश दिया है। साथ ही विधायकों के मतदान की वीडियोग्राफी कराने तथा इसे सीलबंद लिफाफे में अदालत के समक्ष सौंपने को भी कहा गया है।
इससे पूर्व शुक्रवार प्रातः केंद्र सरकार ने अदालत में कहा कि वह उत्तराखंड में शक्ति परीक्षण कराने को तैयार है। अदालत ने दो दिन पूर्व केंद्र सरकार से कहा था कि वह उत्तराखंड में शक्ति परीक्षण कराने पर विचार करे। केंद्र सरकार ने हाल ही में नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर रोल लगाई है।
उल्लेखनीय है कि गत 18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मत-विभाजन की भाजपा की मांग का कांग्रेस के 9 विधायकों ने समर्थन किया था, जिसके बाद प्रदेश में सियासी तूफान पैदा हो गया और उसकी परिणति 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन के रूप में हुई थी। इस दौरान भाजपा का प्रयास रहा कि कांग्रेस के बागियों की संख्या नौ से बढ़ कर 12-13 हो जाए ताकि दल बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य घोषित न किया जा सके।
उत्तराखंड में 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 36 और भाजपा के पास 27 विधायक हैं। नौ विधायकों के अयोग्य घोषित हो जाने के बाद अब बहुमत के लिए 32 विधायकों की ही जरूरत है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दावा है कि उनके पास अन्य 6 विधायकों द्वारा बनाए गए प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिव फ्रंट (पीडीएफ) के सहयोग से पूर्ण बहुमत प्राप्त है।