देहरादून/ नई दिल्ली। केंद्र सरकार अब उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने को राजी हो गई है। केंद्र ने शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट में कह दिया कि वह उत्तराखंड विधानसभा में अदालत की निगरानी में शक्ति परीक्षण कराने को सहमत है। गत माह उत्तराखंड के राज्यपाल और नैनीताल हाईकोर्ट ने भी यही आदेश दिया था कि विधानसभा में अदालत की निगरानी में शक्ति परीक्षण हो। उस समय केंद्र के विचार और थे।
सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र की सहमति के बाद कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा के पटल पर विश्वास मत हासिल करने का मौका दिया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि कांग्रेस के 9 बागी विधायक शक्ति परीक्षण में मतदान नहीं कर सकेंगे। इस समय उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू है।
दो दिन पूर्व ही सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र को सुझाव दिया था कि वह उत्तराखंड के मामले में विधानसभा में शक्ति परीक्षण के बारे में विचार करे। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उत्तराखंड में शक्ति परीक्षण के लिए वह पर्यवेक्षक नियुक्त करे। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आग्रह किया कि मतदान की प्रक्रिया पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त या पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में कराई जाए। शक्ति परीक्षण की तिथि अभी तय नहीं हुई है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य में राष्ट्रपति शासन को रद्द कर दिया था, जिसके बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है और कोर्ट ने फ़िलहाल हाईकोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा रखी है।
उत्तराखंड में सियासी संकट की शुरुआत 18 मार्च को हुई थी, जब कांग्रेस के 36 विधायकों में से नौ बागी हो गए और वित्त विधेयक पर मतदान के समय भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के साथ नज़र आए थे। इस दौरान भाजपा का प्रयास रहा कि कांग्रेस के बागियों की संख्या नौ से बढ़ कर 12-13 हो जाए ताकि दल बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य घोषित न किया जा सके।
उत्तराखंड में 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 36 और भाजपा के पास 27 विधायक हैं। नौ विधायकों के अयोग्य घोषित हो जाने के बाद अब बहुमत के लिए 32 विधायकों की ही जरूरत है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दावा है कि उनके पास अन्य 6 विधायकों द्वारा बनाए गए प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिव फ्रंट (पीडीएफ) के सहयोग से पूर्ण बहुमत प्राप्त है।