अल्मोड़ा। विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने जौ की नई किस्म वीएल जौ-118 विकसित की है। यह प्रजाति उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों
विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. जेसी भट्ट ने बताया कि वर्तमान में उत्तर पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 59 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में वर्षा आधारित जौ की खेती की जाती है। संस्थान के वैज्ञानिक डा. लक्ष्मीकांत, डा. एसके जैन और डा. दिवाकर महंता ने जौ की यह नई किस्म वीएल जौ-118 विकसित की है। हाल ही में स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विवि के कृषि शोध केंद्र दुर्गापुर (जयपुर) में हुई 51वीं अखिल भारतीय गेहूं तथा जौ अनुसंधानकर्ताओं की गोष्ठी में वीएल जौ-118 की पहचान की गई। उन्होंने बताया कि वीएल जौ-118 की बुवाई के लिए 15 अक्तूबर से नवंबर के प्रथम सप्ताह का समय उपयुक्त है। 160 से 170 दिन में पकने वाली यह किस्म काफी उपयोगी है।
पर्वतीय भाग में इस अवधि में जौ की औसत उपज 12.23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है, जबकि वीएल जौ-118 में पौने तीन गुनी अधिक 34.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देने की क्षमता है। डा. भट्ट ने बताया कि रबी के सीजन में कम वर्षा होने के उपरांत भी इस किस्म ने अच्छी पैदावार दी है। उन्होंने बताया कि परीक्षण में पिछले तीन वर्षों में इस प्रजाति ने उत्तराखंड तथा हिमाचल के वर्षा आधारित क्षेत्रों में 90.84 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत से पैदावार दी है। परीक्षणों में इस प्रजाति ने वर्षा आधारित क्षेत्र में 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक नत्रजन के प्रति अच्छे परिणाम दिए हैं। यह प्रजाति पीली, भूरी तथा गेरुई रोग के लिए भी प्रतिरोधी है। इस प्रजाति में लगभग दस फीसदी प्रोटीन पाया जाता है। पौधे की ऊंचाई 75-80 सेमी होती है। उन्होंने बताया कि छिल्के सहित मोटे दाने वाली इस किस्म के उत्पादन से उत्तर पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्रों में जौ की उत्पादकता में वृद्धि होगी।
उत्तराखंड-हिमाचल के लिए जौ की नई किस्म विकसित
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