हिमाचल प्रदेश में 168 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली गोबिंदसागर झील अपने तटवर्ती सैकड़ों गांवों के लिए एक आदर्श, सस्ती एवं विश्वसनीय जल परिवहन व्यवस्था भी प्रस्तुत करती है। साठ के दशक में झील के अस्तित्व में आने के बाद यहां धीरे-धीरे परिवहन की यह व्यवस्था मजबूत होती गई और आज तो स्थिति यह हो गई है कि इन क्षेत्रों में मोटरबोट और नौकाओं के बिना जीवनचर्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
यातायात के अतिरिक्त अपने कृषि उत्पाद बाजार तक पहुंचाना, वहां से आवश्यक वस्तुएं लाना और मवेशियों तक को इधर-उधर ले जाना सब इसी जल परिवहन व्यवस्था पर निर्भर है।
भाखड़ा से सलापड़ तक 90 किलोमीटर लंबी इस झील में सौ से अधिक छोटे-बड़े मोटरबोट और नौकाएं चलती हैं। जल परिवहन की इस व्यवस्था के द्वारा ही लोग झील के आर-पार पहुंच कर अपने काम निपटाते हैं, रिश्तेदारों के यहां आते-जाते हैं। ब्याह शादियों में भी इन मोटरबोटों का इस्तेमाल बारात ले जाने के लिए किया जाता है। मकान बनाने के लिए ईंट, पत्थर, रेत, लकड़ी व दूसरा सामान भी इन्हीं द्वारा ढोया जाता है। कुछ मोटरबोट विशेष रूप से सामान आदि ढोने के लिए ही बनाए गए हैं, जिन्हें लोग समुद्री जहाज की तर्ज पर झील के जहाज कहते हैं।
गोबिंदसागर के किनारे भाखड़ा घाट, ब्राह्मणीकलां घाट, सीर खड्ड, नकराना, जगातखाना, कोहीना, ऋषिकेश, धराड़सानी, नाल्यांकानौण, लुहणू, बेरी और कल्लर आदि घाट काफी मशहूर हैं। नाल्याकानौण घाट जिला मुख्यालय बिलासपुर के निकट है। यहां हर समय दर्जनों मोटरबोट खड़ी रहती हैं, जिन्हें देख कर यहां एक छोटी बंदरगाह होने का सा आभास होता है। बाहर से आने वाले पर्यटकों को यह नजारा खूब आकर्षित करता है।
गोबिंदसागर में जल परिवहन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह लोगों को बहुत सस्ती पड़ती है और आवागमन में समय भी बहुत कम लगता है। सलापड़ पंचायत के पूर्व उप प्रधान कांशी राम बताते हैं कि उनके गांव से जिला मुख्यालय बिलासपुर तक बस से सफर करके पहुंचना हो तो अढ़ाई-तीन घंटे का समय लगता है और किराया भी 50 रुपये के करीब देना पड़ता है। यदि मोटरबोट से जाना हो तो मात्र दस रुपये किराया देकर डेढ़ घंटे में जिला मुख्यालय पहुंचा जा सकता है। इसी तरह ऋषिकेश, धराड़सानी, कोहना, बेरी दड़ोला आदि के गांवों से मोटरबोट द्वारा अढ़ाई-तीन रुपये किराया देकर बहुत कम समय में बिलासपुर पहुंचा जा सकता है, जबकि यदि बस से जाना हो तो 20 रुपये किराया देना पड़ता है और समय भी अधिक लगता है।
गोबिंदसागर की जल परिवहन व्यवस्था 40-45 साल पुरानी है। मोटरबोट ठेकेदार सरकार से बाकायदा रूट परमिट लेकर अपने मोटरबोट चलाते हैं। इनकी समय-समय पर चैकिंग भी होती है। झील के पुराने मोटरबोट ठेकेदार मियां किशनसिंह चंदेल बताते हैं कि यहां मोटरबोट के सभी चालक बहुत कुशल हैं।
यात्रा के समय यदि कभी झील में तूफान आ जाए तो भी चालक अपनी बोट और यात्रियों को कुशलता पूर्वक किनारे पहुंचा देते हैं। चंदेल कहते हैं कि तूफान के समय यात्रियों को संयम रखना पड़ता है, क्योंकि उनके हड़बड़ाने से बोट का संतुलन बिगड़ सकता है। लेकिन मोटरबोट से नियमित सफर करने वाले इस समस्या से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं।
परिवहन की यह व्यवस्था बिलासपुर में उस समय यात्रियों के लिए बरदान बन जाती है जब वर्षाऋतु में चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय मार्ग बनेड़ व छड़ोल आदि के पास भूस्खलन के कारण अवरुद्ध हो जाता है। तब चंडीगढ़ की ओर से आने वाले लोग जगातकाना में मोटरबोट में बैठ कर बिलासपुर पहुंच जाते हैं। बिलासपुर से चंडीगढ़ आदि जाने वाले लोग भी मोटरबोट में बैठ कर आगे ज्योरीपत्तन से बस पकड़ कर अपने गंतब्य तक पहुंचते हैं।
आज भी काफी लोग झील के उस पार के जंगलों से लकडिय़ां बीन कर मोटरबोट द्वारा बिलासपुर में बेचने के लिए लाते हैं। सर्दियों में इस लकड़ी की काफी मांग रहती है। लोग इस दौरान इन्हें चूल्हें में जला कर खाना भी बनाते हैं और आग भी तापते हैं। गांवों से दूध, फल व सब्जियां बोट द्वारा ही नियमित रूप से शहर में पहुंचते हैं। जिस तरह सड़कों को हमारी जीवन रेखा के रूप में जाना जाता है, ठीक उसी तरह मोटरबोट भी यहां लोगों के जीवन का प्रमुख हिस्सा बन गई हैं। इनके बिना आज यहां लोगों की दिनचर्याकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।