हिमाचल प्रदेश में बढ़ती पर्यटनीय गतिविधियों के लिए यहां के धार्मिक स्थलों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रदेश में ऐसे अनेक धार्मिक स्थल हैं जो अपनी पौराणिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ प्रकृति के अनुपम नजारे भी पेश करते हैं। सिरमौर जिले में रेणुकाजी भी एक ऐसा ही धार्मिक पर्यटक स्थल है। यहां रेणुका झील न केवल आकर्षण का केंद्र है, बल्कि इससे जुड़ी पौराणिक गाथाएं भी उतनी ही रोचक हैं।
रेणुका झील एक सोई हुई नारी की तरह प्रतीत होती है। मान्यता है कि माँ रेणुका आज भी यहां इस झील के रूप में विद्यमान हैं। यहीं पर एक स्थान पर प्रवाहित हो रहे मीठे जल के बारे में मान्यता है कि यह माता रेणुका का दूध है। श्रद्धालु इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
पौराणिक लोक कथाओं के अनुसार महर्षि भृगु के वंशज ऋ षि जमदग्नि का विवाह पहाड़ी राजा प्रसेनजीत की पुत्री रेणुका से हुआ था। उनके पांच पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र का नाम राम रखा गया। उन्हीं दिनों आर्यावर्त राजा सहस्रबाहू के आत्याचारों से सभी ऋषि मुनि भयभीत थे। कहते हैं इसी प्रयोजनार्थ ऋषि जमदग्नि ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या कर उन से सहस्रबाहू के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने ऋषि तप से प्रसन्न हो कर माँ रेणुका के गर्भ से अवतरित हो इस धरा को पापी सहस्रबाहू के आंतक से मुक्त करने के लिए अपने पिता जमदग्नि, दादा ऋचिक तथा अपने गुरू महर्षि कश्यप से शस्त्र की शिक्षा ली तथा बाद में भगवान शिव की अराधना कर नाना प्रकार की शिक्षाएं ग्रहण कीं। उनकी लगन, मेहनत और कठोर तप से प्रसन्न हो भगवान शिव ने उन्हें अपना प्रिय शस्त्र परसा भेंट किया और अजेय होने का वरदान दिया। इस प्रकार वे राम से परशुधारी ‘परशुरामÓ हो गये। उसी दौरान एक दिन ऋषि जमदग्नि तपे के टीले पर तपोलीन थे तथा माँ रेणुका उनके लिए रामसरोवर से नित्य प्रात: जल भरकर लाया करती थीं। एक दिन जल भरने गई रेणुका को रास्ते में हिरणों का एक खूबसूरत
जोड़ा दिखाई दिया, जिसे देख वे मुग्ध हो गईं और आश्रम में जल पहुंचाने में विलम्ब हो गया। इस पर ऋषि जमदग्नि ने क्रोधवश अपने पुत्रों को माँ का वध करने का आदेश दिया। भगवान परशुराम ने पितृ आज्ञा का पालन करते हुए माँ का वध कर दिया। इस पर ऋषि जमदग्नि ने प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान मांगने को कहा तो परशुराम ने माँ रेणुका को पुनर्जीवित करने का वर मंागा और माता पुनर्जीवित हो गईं।
एक बार जब भगवान परशुराम महेन्द्र पर्वत पर तप कर रहे थे तो अत्याचारी सहस्रार्जुन तपे के टीले पर पहुंचकर ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की मांग करने लगा। कामधेनु गाय मनुष्य को इच्छानुसार वर देने वाली एक दिव्य गाय थी। ऋषि जमदग्नि ने कहा कि यह गाय उनके पास कुबेर की अमानत है और इसे वह किसी को नहीं दे सकते। इस पर सहस्रबाहू ने ऋषि का वध कर दिया तथा माँ रेणुका अपनी रक्षा हेतू दौड़ कर राम सरोवर में समा गयीं और उसने देखते ही देखते झील का रूप धारण कर लिया। बाद में इसका नाम रेणुका झील पड़ गया। महेन्द्र पर्वत पर तपोलीन भगवान परशुराप अपने तपोबल से यह सब देख रहे थे। उन्होंने ने सहस्रबाहू तथा उसके साथी दुष्ट प्रकृति राजाओं के साथ घमासान युद्ध किया। खून की नदियां बह निकलीं। कहते हैं तभी से यहां से बहने वाली नदी ‘जलालÓ का रंग लाल हो गया, जो आज भी लाल ही है। अन्त में सहस्रबाहू तथा उसके साथी व सेना का नाश कर भगवान परशुराम ने इस धरा को उनके अत्याचारों से मुक्त करवाया और उसके बाद अपने तपोबल व योग शक्ति से माँ का आह्वान किया। माँ-पुत्र का यह पवित्र मिलन कार्तिक की शुक्ल दशमी को हुआ और माँ रेणुका ने प्रतिवर्ष इसी दिन मिलने का वचन दिया। तभी से मां और पुत्र के इस पवित्र मिलन पर रेणुका में मेला लगता है। भगवान परशुराम पहाड़ों पर स्थित अपनी देवठी से पालकियों में सज कर ढोल नगाड़ों सहित आते हैं। श्रद्धालुओं का सैलाब माँ रेणुका और भगवान परशुराम के इस पवित्र मिलन को देखने उमड़ पड़ता है। देश के कोने- कोने से लोग यहां माँ का आशीर्वाद लेने आते हैं और रेणुका झील में डुबकी लगाते हुए मां से मन्नतें मांगते हैं।