विश्व के सबसे ऊंचाई पर स्थित धार्मिक स्थल किन्नर कैलाश की यात्रा का अपना अलग महत्व है। करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित किन्नर कैलाश विश्व का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जो दिन में तीन बार अलग-अलग रंग में नजर आता है। इसके दर्शनों के लिए वर्ष में केवल दो माह बरसात के मौसम में ही पहुंचा जा सकता है।
शिवलिंग रंग क्यों बदलता है, इसकी गुत्थी अभी तक नहीं सुलझ पाई है। मान्यता है कि भगवान शिव सर्दियों में यहां आकर तपस्या करते हंै ताकि उन्हें कोई परेशान न करे। शिवलिंग को देखकर शिव भक्त स्वयं को खुशनसीब समझते हैं। लोगों में मान्यता है कि यहां आकर भगवान शिव भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने के साथ ही उनके कष्टों और पापों का निवारण भी करते हंै।
किन्नर कैलाश राजधानी शिमला से करीब 250 किलोमीटर की दूरी पर जिला किन्नौर के मुख्यालय कल्पा के सामने की सबसे ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां पहुंने के लिए पहला पड़ाव रिकांगपिओ या कल्पा है, जहां से दो दिन की कठिन चढ़ाई के बाद किन्नर कैलाश पहुंचा जा सकता है। यहां का रास्ता पथरीला और ग्लैशियरों से भरा है। यहां कई स्थानों पर पत्थरों की गुफाओं में से होते हुए भी गुजरना पड़ता है। लेकिन किन्नर कैलाश पहुंचते ही श्रद्धालुओं की सारी थकान छू मंतर हो जाती है, क्योंकि यहां का नैसर्गिक सौंदर्य ही ऐसा है।
हिमालय पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित होने के कारण यहां लगभग सारा साल बर्फ रहती है। इसलिए यहां तक केवल बरसात के दिनों ही पहुंचा जा सकता है, क्योंकि इस दौरान रास्ते पर बर्फ नहीं होती है।
एक लोककथा के अनुसार बलि के पुत्र बाणासुर की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भागवान शिव ने उसे यहां दर्शन दिए थे और बाणासुर के आग्रह पर वे यहीं बस गए थे। इतने दुर्गम स्थान पर होने के बावजूद शिव भक्त उन तक पहुंच ही जाते हैं। किन्नर कैलाश की खास बात यह है कि यहां शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। सुबह जब सूरज की रोशनी इस पर पड़ती है तो यह पीला होता है, दोपहर में काला और शाम को भूरा नजर आता है। कभी-कभी यह सफेद भी नजर आता है। शिवलिंग को इस तरह रंग बदलते देख श्रद्धालु आश्चर्यचकित और रोमांचित हो जाते हैं। शिवलिंग के रंग बदलने के बारे में अभी कुछ भी ठोस पता नहीं चल पाया है।
किन्नर कैलाश की मान्यता विश्वभर में है। खासकर किन्नौर जिला में तो भगवन शिव को खास महत्व दिया गया है। यहां पर हर कार्य शिव के आदेश पर ही होते हैं। देवी देवता भी शिव के समक्ष नतमस्तक होते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां कई बार घंटियों और भगवान शिव के बैल नंदी की आवाजें भी सुनाई देती हैं।