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सुकरात (Socrates) की दस प्रमुख शिक्षाएं…

महान यूनानी दार्शनिक सुकरात ( Socrates) का जन्म 469 ई. पू. एथेन्स (यूनान) के एक गांव में हुआ। उनके पिता सोफ्रोनिसकस, संगतराश थे और उनकी माता दाई का काम करती थीं। प्रारंभ में तो सुकरात ने अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाया। बाद में वे सेना की नौकरी में चले गये और पैटीडिया के युद्ध में वीरतापूर्वक लड़े थे सुकरात एक उच्च कोटि के मनीषी, ईमानदार, सच्चे एवं दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति थे। वे धर्म के संस्थागत रूप को न मानकर धर्म के सैद्धांतिक पक्ष को मानने वाले थे। उनकी मान्यताएं ईसाई धर्म की मान्यताओं के निकट थीं। सुकरात सुबह ही अपने घर से निकलकर लोगों को उपदेश देने के लिए निकल पड़ते थे।

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बुद्ध की भांति सुकरात ने भी कभी कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवन काल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु कर दिया था, जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह सुविधा नहीं है। सुकरात का क्या जीवन दर्शन था, यह उनके आचरण से ही मालूम होता है। वे कहते थे- ‘बुद्धि ही सबसे बड़ा सद्गुण है। बुद्धिमान व्यक्ति हर परिस्थिति में सन्तुलित रहता है।शिक्षित व्यक्ति उचित-अनुचित का विवेक कर सकता है। अत: सभी लोगों को शिक्षित होना चाहिए।’ सुकरात के दुश्मनों को 399 ईसा पूर्व उन्हें खत्म करने में सफलता मिल गयी। उन्होंने सुकरात पर मुक़दमा चलवा दिया था। उन पर तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का दोष लगाया गया। इसके लिए उन्हें जहर देकर मारने का दंड मिला।

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यहां पढ़ें सुकरात (Socrates) की दस प्रमुख शिक्षाएं( Teachings) –

 

 

-वैसा जीवन, जिसमें परीक्षाएं न ली गयी हों, जीने योग्य नहीं है।

(The un-examined life is not worth living.)

 

-मैं किसी को कुछ भी नहीं पढ़ा सकता। मैं केवल उन्हें सोचने पर मजबूर कर सकता हूँ।

(I cannot teach anybody anything. I can only make them think.)

 

-हर एक व्यक्ति के प्रति दयालु बने, क्योंकि हर व्यक्ति एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है।

(Be kind, for everyone you meet is fighting a hard battle.)

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-सुदृढ़ मानसिकता वाले लोग सिद्धातों अथवा उद्देश्यों की चर्चा करते हैं, सामान्य मानसिकता वाले लोग घटनाओं की चर्चा करते हैं तथा कमजोर मानसिकता वाले लोग लोगों की चर्चा करते हैं।

(Strong minds discuss ideas, average minds discuss events, weak minds discuss people.)

 

 

-शिक्षा अग्नि को प्रज्वलित करने जैसा है, बर्तन भरने जैसा नहीं।

(Education is the kindling of a flame, not the filling of a vessel.)

 

-जो व्यक्ति अपने पास होने वाली चीजों से संतुष्ट नहीं है, वह उसे भविष्य में मिलने वाली चीजों से भी संतुष्ट नहीं होगा।

(He who is not contented with what he has, would not be contented with what he would like to have.)

 

-कभी कभी आप दीवारें दूसरों को दूर रखने के लिए खड़ी नहीं करते, बल्कि इसलिए खड़ी करते हैं कि आप ये देखना चाहते हैं कि इन्हे कौन तोड़ने की कोशिश करता है।

(Sometimes you put walls up not to keep people out, but to see who cares enough to break them down.)

 

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-संतोष ही प्राकृतिक धन है और भोग- विलास कृत्रिम गरीबी।

(Contentment is natural wealth, luxury is artificial poverty.)

 

-ज्ञान को धन से ज्यादा महत्वपूर्ण समझें, क्यूंकि ज्ञान शाश्वत हैं और धन क्षणभंगुर।

(Prefer knowledge to wealth, for the one is transitory, the other perpetual.)

 

-अगर आप अच्छे धुड़सवार बनना चाहते हैं तो सबसे बेकाबू घोड़े को चुनें, क्यूंकि अगर आप इसे काबू में कर लेते हैं तो आप हर घोड़े को काबू कर सकते हैं।

(If you want to be a good saddler, saddle the worst horse; for if you can tame one, you can tame all.)

 

प्रस्तुति- एचएनपी सर्विस

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एचएनपी सर्विस

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