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हरिद्वार। कहते हैं कि प्यार पर किसी का वश न कभी चला और न चलेगा। परवान चढऩे वाला प्यार न जाति बंधन को मानता है और न ही धर्म की सीमाओं को। ऐसा ही मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) स्थित 13 मढ़ी के महंत शिवनारायण गिरि के साथ भी हुआ। उनकी अचानक एक विदेशी महिला से आंखें चार हो गईं, दोनों का प्यार आगे बढ़ा और अंतत: उन्होंने शादी कर ली। इस विवाह में महंत के दो संन्यासी साथियों ने उनकी भी मदद की। परिणाम स्वरूप संत समाज ने महंत और उनके दो संन्यासी सहयोगियों को अखाड़े से निष्कासित कर दिया। इसके साथ ही महंत की गद्दी भी खतरे में पड़ गई है। हरिद्वार स्थित जूना अखाड़े के नागा संन्यासियों ने तीनों साधुओं से रोटी और धूनी के संबंध तोड़ दिए हैं। अन्य भी सभी अखाड़ों को आगाह कर दिया गया है कि इन तीनों का पूर्ण बहिष्कार करें।
मंगलवार शाम जूना अखाड़े की कार्यकारिणी की हुई बैठक में प्रस्ताव पारित कर मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) स्थित 13 मढ़ी के महंत शिवनारायण गिरि को विदेशी महिला से विवाह रचाने के आरोप में तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया गया। यही नहीं उनका साथ देने वाले पीपलेश्वर गिरि और राधेश्वर गिरि को भी निष्कासित कर दिया गया।
जूना अखाड़े की महत्वपूर्ण बैठक सभापति सोहन गिरि की अध्यक्षता एवं राष्ट्रीय महासचिव विद्यानंद सरस्वती के संचालन में हुई। बैठक में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि, उमाशंकर भारती, भगवत पुरी, प्रेम गिरि, प्रेम पुरी सहित अखाड़े के समस्त पदाधिकारियों ने भाग लिया। इस बारे में 13 मढ़ी के संतों ने प्रस्ताव भेजा था, जिस पर सुनवाई हुई। आरोप लगाया गया कि संन्यास परंपराओं के विपरीत अखाड़े की मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए शिव नारायण गिरि ने मिर्जापुर में एक विदेशी महिला से विवाह रचाया है। जब कोई संन्यास लेता है, तब वह स्वयं अपना श्राद्ध कर अपना अस्तित्व समाप्त कर देता है। उसका घर, गृहस्थ से नाता टूट जाता है। लेकिन शिव नारायण गिरि ने दिगंबर संत होते हुए भी महिला से विवाह रचाया, जो संन्यास परंपरा का अपमान है। अखाड़े ने एक मत से तीनों संतों को निष्कासित करते हुए उनसे रोटी और धूने का रिश्ता तोड़ लिया है। सभी अखाड़ों को संदेश भेजकर आग्रह किया गया है कि तीनों बहिष्कृत संतों से कोई संबंध न रखें। मिर्जापुर स्थित उनकी गद्दी शीघ्र नागाओं द्वारा छीन ली जाएगी।