शिमला। कांग्रेस हाईकमान अब पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को निपटाने की जल्दी में लगती है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के दौरान वीरभद्र सिंह
प्रदेश में वीरभद्र सिंह व उनके समर्थकों पर कड़ी नजर रखी जा रही है और उनकी हर गतिविधियों की रिपोर्ट दिल्ली मंगवाई जा रही है। सोमवार को वीरभद्र सिंह दिल्ली से ऊना पहुंचे। वहां वे किन -किन लोगों से मिले और उन्होंने अपनी टिप्पणियों में हाईकमान को क्या-क्या नसीहतें दीं, इसका सारा चिट्ठा हाईकमान के पास तुरंत पहुंच गया। मंगलवार को उनके शिमला पहुंचने और यहां अपने आवास में समर्थकों के साथ बैठक करने को लेकर कुछ अखबारों में समाचर छपे। सूत्रों के अनुसार मंगलवार को हाईकमान से फोन पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कुछ नेताओं को निर्देश मिला कि वीरभद्र सिंह की बैठक में जाने वाले विधायकों की सूची तुरंत दिल्ली भेजी जाए और साथ ही उन विधायकों के क्षेत्रों में सैकंड लाइन के नेताओं की सूची भी संलग्न की जाए। कांग्रेस कार्यालय से सूचना लीक हो गई और इसके परिणाम स्वरूप होलीलॉज में वीरभद्र सिंह का दरबार खाली हो गया। मंगलवार को मात्र 8-10 लोग वीरभद्र सिंह के साथ थे। इनमें पार्टी के मात्र दो विधायक कुलदीप पठानिया (भटियात) और नंदलाल (रामपुर) ही थे। उनके अतिरिक्त पूर्व विधायक रंगीलाराम राव, आदर्श सूद और हरीश जनारथा आदि ही वहां थे। ये सभी प्रात: से होलीलॉज में अंदर बैठे रहे और पत्रकार घंटों बाहर बैठे उनका इंतजार करते रहे। लगभग साढ़े 12 बजे वीरभद्र सिंह बाहर आए और सीधे अखबारों पर बरस पड़े। उनका कहना था कि होलीलॉज में समर्थकों के साथ उनकी बैठक को लेकर छपी खबरें झूठी थीं, जबकि उन्होंने यहां कोई बैठक नहीं रखी थी। सोमवार को ऊना जिले के संतोषगढ़ में उन्होंने कहा था, ”कांग्रेस हाईकमान ने यदि जनाधार वाले नेताओं को नजरंदाज किया तो प्रदेश में धूमल सरकार रिपीट हो जाएगी। प्रदेश कांग्रेस में अनेक बड़े नेता प्रो. धूमल के दरबारी बने हुए हैं। ये लोग प्रो. प्रेमकुमार धूमल के परम मित्र हैं और कांग्रेस में मात्र दिखावे के लिए बने हुए हैं। इन लोगों का निशाना भाजपा नहीं बल्कि वीरभद्र सिंह ही हैं। ”
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की प्रकृति शांत बैठे रहने की नहीं है और यही उनकी सबसे बड़े समस्या है। कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश के लिए गठित चुनाव समिति में वीरभद्र सिंह को नजरंदाज किया तो उन्होंने तुरंत प्रतिक्रिया करते हुए हाल ही में उन्हें सौंपे गए प्रचार समिति के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे बार-बार अपने बयानों में कांग्रेस हाईकमान को धमकी भरे अंदाज में नसीहतें देते रहे। उघर, हाईकमान ने यह ठान रखी है कि वह प्रदेश में विधानसभा चुनाव का संचालन पूरी तरह अपने नियंत्रण में रखेगी, जो वीरभद्र सिंह के रहते आसान नहीं है। श्रीसिंह अभी तक तमाम विरोध के बावजूद प्रदेश में कांग्रेस को अपने तरीके से चलाते रहे हैं। अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए वे हाईकमान तक से भिड़ते रहे हैंऔर टिकट से वंचित रहे अपने समर्थकों को निर्दलीय रूप से खड़ा कर भी जिताते रहे हैं।
वीरभद्र सिंह की इन दिनों अपनी कुछ खास मजबूरियां हैं। वो और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह बहुचर्चित सीडी प्रकरण में अभियुक्त बने हैं और उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह चुनाव लडऩे के लिए अभी छोटे हैं। हाईकमान को वीरभद्र सिंह से निपटने के लिए यही उपयुक्त समय लगता है।
कांग्रेस हाईकमान की वीरभद्र सिंह से रंजिश नई नहीं है। यह सिलसिला नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्वकाल से लेकर चला आ रहा है। उस समय प्रधानमंत्री ने पं. सुखराम को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था। लेकिन वीरभद्र सिंह अधिकांश विधायकों को अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब रहे और नरसिम्हाराव को मुंहकी खानी पड़ी। उसके बाद से हाईकमान और वीरभद्र सिंह में छत्तीस का आंकड़ा लगातार बना रहा, लेकिन संगठन पर मजबूत पकड़ के चलते उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की। पिछले संसदीय चुनाव में उन्हें मंडी से जब्री खड़ा किया गया और फिर पार्टी में उनके विरोधियों ने उन्हें हराने के लिए रात-दिन एक कर दिया। लेकिन श्रीसिंह किसी तरह सीट निकालने में कामयाब रहे। वीरभद्र सिंह के दिल्ली चले जाने से खाली हुई रोहड़ू सीट पर उनकी पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह का टिकट काट दिया गया तो उन्होंने भी प्रतिक्रिया स्वरूप वहां से पार्टी प्रत्याशी को जीतने नहीं दिया। पिछले दिनों वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह के युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए हुआ चुनाव रद्द कर दिया गया तो राजनीतिक पंडित भांप गए थे कि अब हाईकमान वीरभद्र सिंह को हाशिए पर धकेलने के मूड में आ गई है। लेकिन वीरभद्र सिंह उसके बावजूद अपनी लड़ाई लड़ते रहे। उनकी मांग है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव से पूर्व ही मुख्यमंत्री को घोषणा कर दे। वीरभद्र नहीं चाहते हैं कि पार्टी के लिए चुनाव वे जिताकर दें और बाद में हाईकमान उत्तराखंड की तर्ज पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी पसंद के किसी और नेता को बिठा दे। इसी कशमकश में एक बार फिर से वीरभद्र सिंह और हाईकमान आमने-सामने हो गए हैं। माना जा रहा है कि इस बार लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है।
हाईकमान वीरभद्र सिंह को निपटाने की जल्दी में!
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