देहरादून। उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर रिकार्ड वोटिंग सियासी पंडितों के लिए एक पहेली बन गई है। सूबे में
मुख्य मुकाबले में मानी जा रही भाजपा और कांग्रेस के पास मतदान बढ़ोतरी दर के पक्ष में बेशक अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन वास्तव में इसने राजनीतिक पार्टियों के धुरंधरों की नींद उड़ा दी है। खासतौर पर हरिद्वार और नैनीताल संसदीय सीटों पर वोटिंग का जो अप्रत्याशित आंकड़ा सामने आया है, उसे लेकर नफे-नुकसान की परिभाषाएं गढ़ी जाने लगी हैं। हरिद्वार में 73.10 और नैनीताल में 68.40 फीसदी मतदान हुआ है। हालांकि चुनाव आयोग इससे अधिक मतदान की उम्मीद कर रहा था, लेकिन सियासी दिग्गजों के लिए मत प्रतिशत पहेली बन गया है। हर सियासी दल इसे अपने पक्ष में परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है। आमतौर पर चुनाव में जब ज्यादा मतदान होता है तो उसे सत्ता विरोधी रुझान के तौर पर देखा जाता है। धारणा है कि ज्यादा लोग घरों से तभी बाहर निकलते हैं जब उन्हें अपने गुस्से का इजहार करना होता है। गैर कांग्रेसियों का तर्क है कि ज्यादा पोलिंग का घाटा कांग्रेस के ही खाते में दर्ज होगा। मगर मुख्यमंत्री हरीश रावत शायद इस तर्क से सहमत नहीं हैं। हरिद्वार में हरीश रावत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वहां उनकी पत्नी रेणुका रावत उम्मीदवार हैं। रावत कहते हैं, ‘‘पांचों सीटों पर कांटे का मुकाबला है। हरिद्वार में जिन इलाकों में अधिक मतदान हुआ है, वे अल्पसंख्यक और दलित बहुल हैं।’’ उनकी मानें तो अल्पसंख्यकों का वोट भाजपा को नहीं मिलेगा और दलित वोट पारंपरिक रूप से कांग्रेस का है। हरीश रावत का गणित कांग्रेस को पांचों सीटों पर जीत दिला रहा है। मगर भाजपा हरीश के तर्क से इत्तेफाक नहीं रखती। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक कहते हैं, ‘‘16 मई को मुख्यमंत्री की ये गलतफहमी दूर हो जाएगी। मत प्रतिशत में इजाफा वोटरों की जागरूकता और जुनून का परिणाम है। लोग कांग्रेस को उखाड़ना चाहते हैं। माहौल पूरी तरह से कांग्रेस के खिलाफ है।’’ ये बात सही है कि मत प्रतिशत की पहेली सुलझाने के लिए सियासी दल चाहे जितनी माथापच्ची कर लें, असली तस्वीर तो 16 मई को ही साफ होगी। मगर तब तक सियासी दिग्गजों के बीच वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी को लेकर दावों का जंग जारी रहेगी। सबसे दिलचस्प पहलू तो यह है कि वोट प्रतिशत ने चुनाव में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी की उम्मीदों को भी जगाया है। आप के नेता ये उम्मीद बांध रहे हैं कि जनता ने कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ वोट दिया है। हर दल और उसके नेता की अपनी परिभाषा है। मगर शायद वे इस तथ्य को अनदेखा कर रहे हैं कि वोट प्रतिशत में इजाफा उन मैदानी इलाकों में हुआ है जहां प्रचार ज्यादा प्रभावी था।