देहरादून। उत्तराखंड में इन दिनों आम बहसों में एक प्रश्न मुखरता से उभर कर सामने आ रहा है कि हमारे नेता चुनाव लड़कर आखिर विधानसभा में क्या करने
विधायक निधि योजना के तहत शासन की ओर से इस वित्तीय वर्ष के लिए दो करोड़ प्रति विधायक के हिसाब से 1.42 अरब रुपयों की पहली किश्त जिलों को गत जुलाई माह के पहले हफ्ते में भेज दी गई थी, पर अधिकांश विधायकों ने प्रस्ताव भेजने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। पांच महीनों में 33 विधायकों की ओर से मात्र 32.28 करोड़ रुपये की लागत के 2194 कार्यों के प्रस्ताव विकास विभाग को भेजे गए। इनमें भी मात्र 32 कार्य ही पूरे हो पाए, जिसमें मात्र 6.72 करोड़ की राशि ही खर्च हुई है। 38 विधायक और मंत्री अपनी निधि के अंतर्गत एक भी प्रस्ताव विकास विभाग को नहीं दे पाए हैं। इनमें शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी, स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी, कृषि मंत्री डा. हरक सिंह रावत, वित्त मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश समेत कई मंत्री, नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट सहित विधायकों की एक लंबी सूची शामिल है। इनमें बड़ी संख्या में आपदा प्रभावित क्षेत्रों के विधायक भी शामिल हैं। विपदा की इस घड़ी में जहां विभिन्न प्रांतों के सांसद भी प्रभावितों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं, वहीं यहां के विधायकों का अरनी निधि का खर्च न करना चिंताजनक है। जनता ने पूछना शुरू कर दिया है कि चुनाव जीतने के बाद ये नेता आखिर किस काम में इतना व्यस्त हैं जो उन्हें विधायक निधि खर्च करने की भी सुध नहीं है।
आठ जिलों में एक आना भी खर्च नहीं– विधायकों की ओर से समय पर प्रस्ताव न भेजे जाने से राज्य के आठ जिलों में विधायक निधि के तहत इस साल उपलब्ध बजट में से एक रुपया भी खर्च नहीं हो पाया है। इनमें पौड़ी, उत्तरकाशी, हरिद्वार, रूद्रप्रयाग, चमोली, अल्मोड़ा, नैनीताल और चंपावत जिले शामिल हैं। ग्राम्य विकास निदेशालय के अनुसार योजना के तहत अगस्त माह के अंत तक देहरादून जिले में उपलब्ध बजट में से सर्वाधिक 25 फीसदी फीसदी खर्च हुई। इसके अलावा टिहरी में छह, बागेश्वर में आठ, ऊधमसिंह नगर और पिथौरागढ़ में एक-एक फीसदी धनराशि ही खर्च हो पाई है।
पौड़ी में ग्राम्य विकास निदेशालय के अपर आयुक्त एसएस बिष्ट कहते हैं कि विधायक निधि योजना के तहत जिलों से आई ताजा रिपोर्ट के अनुसार कई विधायकों ने एक भी प्रस्ताव नहीं भेजा है। उनसे जल्द भेजने का अनुरोध किया गया है।