सुखदेव विश्वप्रेमी जी हिमाचल के पालमपुर में दलित अधिकारों पर काम करते हैं और CPI से जुड कर छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। कल सुबह फोन कर बोले, “कामरेड मस्तराम वालिया की डेथ हो गयी है, ग्यारह बजे द्रमण श्मशान पर पहुंच सकते हैं क्या?”
मैं कभी किसी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं रहा हूं। अलबता कम्युनिस्टों के प्रगतिशील विचारों के कारण मैं उन्हें हमेशा मित्र मानता हूं। हिमाचल में मैं नया हूं। इसलिये दिवंगत कामरेड के बारे में जानता नहीं था। ग्यारह बजे मैं दिवंगत के घर पहुंच गया। सुखदेव जी मिल गये। दो अन्य कामरेड विपिन और नानक चन्द जी से सुखदेव जी ने परिचय करवाया।
नानक चन्द जी फायर ब्रिगेड में सिपाही थे, लेकिन साथियों के अधिकारों के लिये आवाज़ उठाने के कारण उन्हें इतना परेशान किया गया कि नौकरी छोड़नी पड़ी।
दलित परिवार में जन्म लिया, पिता मजदूर थे। नानक चन्द जी बता रहे थे कि हमें खाना भी मुश्किल से मिलता था। उन्होंने कहा कि देश में अम्बेडकर और कम्युनिस्ट ना होते तो हमारी हालत कभी ना बदलती।
सुखदेव जी ने मृतक कामरेड मस्तराम वालिया जी के बारे में बताया कि उन्होंने वर्ष 1952 में किसानों की एक सहकारी संस्था की शुरुआत की थी। इस सहकारी संस्था को 1980 में राज्य में प्रथम पुरस्कार भी मिला। लेकिन बाद में भाजपा नेताओं ने इस संस्था में अपने लोग घुसा दिये और इसका बंटाधार कर दिया। पिछले कुछ वर्षों से कामरेड मस्तराम वालिया को पैरालेसिस (पक्षाघात) हो गया और आज उनका देहांत हो गया।
कामरेड विपिन ने कहा, “लाश पार्टी के लाल झण्डे में लिपट कर जानी चाहिये।”
दूसरे कामरेड ने कहा, “पार्टी आफिस फोन करके वहां से एक झण्डा मंगवा लें।”
मैंने सुझाव दिया कि पार्टी आफिस तो दूर है, यहीं किसी दुकान से लाल कपड़ा खरीद कर हंसिया हथौड़ा बनवा लिया जाए।
सुखदेव जी ने जेब से एक पैकेट निकाला और बोले, “लाल कपड़ा तो मैंने पहले ही खरीद लिया है, लेकिन इस पर हंसिया हथौड़ा नहीं बना है।”
मैंने कहा कि सामने चौक के पास एक पेन्टर की दुकान है वो गाड़ियों की नम्बर प्लेट बनाता है। उसके पास चलते हैं।
पेन्टर ने कहा कि ब्रश से बनाऊंगा तो बनाने और सुखाने में एक घन्टा लग जायेगा। अगर आप फोटो दे दें तो प्रिन्टर से निकाल कर कपड़े पर पांच मिनट में चिपका दूंगा।
मैंने इन्टरनेट चालू कर गूगल से हंसिया हथौड़ा का फोटो डाउनलोड कर के पेन्टर को दिया और उसने दस मिनिट में हंसिया हथौड़ा लाल कपड़े पर बना दिया।
हम झण्डा लेकर कामरेड मस्तराम वालिया के निवास पर वापस आये तो पता चला कि शवयात्रा श्मशान की ओर निकल चुकी है। हम चारों लोग झण्डा लेकर दौड़े और शवयात्रा में शामिल हो गये। लेकिन अब समस्या यह कि झण्डे को कामरेड के शव पर कैसे डालें?
मैंने धीमे से बाकी तीनों कामरेड से कहा, “ झण्डा फैला कर पकड़ लो और नारे लगाना शुरू करते हैं।” कामरेड नानकचन्द और मैंने लाल झण्डा फैला कर तान दिया। आगे आगे लोग ‘राम नाम सत्य’ के नारे लगा रहे थे। मैंने जोर से नारा लगाया, “कामरेड मस्तराम वालिया को लाल सलाम।” बाकी तीनों कामरेडों ने ज़ोर से जवाब दिया, “लाल सलाम लाल सलाम।”
मैंने कहा, “कामरेड वालिया को जय भीम”, तीनों कामरेड ने जवाब दिया, “जय भीम जय भीम।”
मैंने कहा, “दुनिया के किसानों मज़दूरों का संघर्ष जिंदाबाद, जवाब आया- “जिंदाबाद जिंदाबाद।” हमारे नारे सुनने के लिये ‘राम नाम सत्य’ वाले अपने नारे बन्द कर चुके थे।
शमशान घाट आ गया था। किसी ने हमसे कहा आप लोग शव पर लाल झण्डा चढ़ाना चाहते हैं तो आ जाइये।
हमने कामरेड मस्तराम वालिया के शव पर झण्डा डाल दिया और एक बार फिर से चार कामरेडों के इन्कलाब जिन्दाबाद और दूसरे इन्कलाबी नारों से आस पास का इलाका गूंज गया।
शव को आग के हवाले कर दिया गया था। सब लोग बैठ कर बातचीत कर रहे थे। कुछ लोग कश्मीर में सेना की कार्यवाही का समर्थन करने लगे। कामरेड विपिन ने इस पर पूरा विश्लेषण सुनाया तो सब लाजवाब हो गए। कुछ घन्टों बाद हम सब वापस चले आये, लेकिन तय पाया गया कि हमें बार बार मिलते रहना चाहिये। सिर्फ शवयात्राओं में नहीं, वैसे भी…।