मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पत्रकार रविंद्र ठाकुर का शव दिल्ली के बाराखंबा थाने में पड़ा है। पुलिस रविंद्र के परिजनों का इंतजार कर रही है ताकि उनका पोस्टमार्टम कराया जा सके। सत्ताधीशों को शायद इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि समाज और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक एक शख्स आज व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाता हुआ जान पर खेल गया।
नई दिल्ली। सत्ता और मीडिया घरानों का नापाक गठबंधन आज मीडिया कर्मियों के लिए जानलेवा साबित होता जा रहा है। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के मीडिया कर्मी रविंद्र ठाकुर पिछले 13 वर्षों से न्याय की आस में यहां HT कार्यालय के सामने धरने पर बैठे रहे। बीती रात हमेशा की तरह वे धरनास्थल पर सोये, लेकिन प्रातः नहीं उठ पाए। सत्ता और समाज की संवेदनहीनता ने उन्हें अंततः सदा के लिए खामोश कर दिया।
मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पत्रकार रविंद्र ठाकुर का शव दिल्ली के बाराखंबा थाने में पड़ा है। पुलिस रविंद्र के परिजनों का इंतजार कर रही है ताकि उनका पोस्टमार्टम कराया जा सके। सत्ताधीशों को शायद इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि समाज और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक एक शख्स आज व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाता हुआ जान पर खेल गया।
हिंदुस्तान टाइम्स ने वर्ष 2004 में लगभग 400 कर्मियों को एक झटके में सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया था, जिनमें रविंद्र ठाकुर भी शामिल थे। इसके बाद शुरू हुई न्याय की जंग। इस दौरान रविंद्र ने अपने कई साथियों को बदहाल हालत में असमय दुनिया छोड़ते हुए देखा। इनके कुछ साथियों ने तो खुदकुशी करने जैसे कदम तक उठा लिए। अपने कई साथियों की अर्थियों को कंधा देने वाला यह शख्स खुद इस तरह इस दुनिया से रुखसत होगा, शायद ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा होगा।
रविंद्र ठाकुर पिछले 13 वर्षों से हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यालय के सामने न्याय के लिए धरने पर बैठे थे। न संस्थान ने उनकी सुध ली और न ही सत्ता और न्यायिक व्यवस्था ने। कोई कुछ खिला देता तो खा लेते अन्यथा भूखे पेट सो जाते। वे जिंदा रहने के लिए आसपास के दुकानदारों और कुछ जानने वालों के रहमोकरम पर थे। बीती रात भी वे हमेशा की तरह सोये, लेकिन प्रातः नहीं उठ पाए।
लोकतंत्र का चौथा खंबा आज एक यक्ष प्रश्न लिए खड़ा है कि सत्ता और मीडिया घरानों का नापाक गठबंधन मीडिया कर्मियों को आखिर कब तक इस तरह लीलता रहेगा?