नालागढ़। भौतिकवाद के इस युग में मानवीय संवेदनाओं के लिए अब शायद कोई जगह नहीं बची है। औद्योगिक
नालागढ़ के निकट खेड़ा गांव के वासी बिहारी लाल की मानसिक हालत कुछ ठीक नहीं है। लेकिन उसका सही ढंग से इलाज करने के बजाए परिवार के सदस्य दिन भर उसे घर के सामने खेत में एक चारपाई से लोहे की जंजीरों के साथ बांध देते हैं और रात को घर के अंदर ले जाते हैं। इसी हालत में उसे खाना व पानी दिया जाता है।
ग्रामीणों ने बताया कि चिलचिलाती धूप में बुजुर्ग अक्सर दिन भर बंधनमुक्त होने के लिए छटपटाता रहता है और पत्थर से पीट-पीट कर लोहे की जंजीर को तोड़ने का प्रयास करता है। बीच-बीच में वह आस-पास नजर आने वालों से गुहार भी लगाता है कि उसे खोल कर मुक्त किया जाए, लेकिन उसके हाथ निराशा ही लगती है।
कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि वे बिहारी लाल को पिछले काफी समय से इसी हाल में देख रहे हैं, लेकिन अपनी तरफ से इस मामले में कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। लोगों का कहना है कि ऐसे मामलों में प्रशासन या फिर सामाजिक संगठन ही कुछ ठोस कर सकते हैं, लेकिन पता नहीं क्यों सभी ने इस ओर से मुंह फेर रखा है।
मीडिया के कुछ लोगों ने इस संबंध में जब बिहारीलाल के परिवार के सदस्यों से बात करनी चाही तो उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया। बुजुर्ग बिहारी लाल स्वयं कुछ भी स्पष्ट बोलने की स्थिति में नहीं है। तो फिर क्या यह मान लिया जाए कि जिंदगी की इस सांझ में बिहारी लाल का सफर लोहे की जंजीरों के साथ चारपाई से बंधकर ही कटेगा…?