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अभी भी नहीं चेते तो शिक्षा विभाग का होगा डिब्बा गोल…

शिमला। हिमाचल प्रदेश में सरकारी शिक्षण संस्थानों के अस्तित्व को लेकर एक बड़ी बहस शुरू हो गई है। सरकारी

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स्कूलों में जिस रफ्तार से छात्रों की संख्या घट रही है, उससे निकट भविष्य में ही बड़ी संख्या में स्कूलों के बंद होने की आशंका है। इस मुद्दे पर विभागीय अधिकारियों के एक गहन विचार मंथन में तो यहां तक आशंका जताई गई है कि हालत नहीं सुधरी तो वर्ष 2025 तक सारे सरकारी स्कूल के बंद करने पड़ जाएंगे। विद्यार्थियों की संख्या में हर वर्ष 15-20 प्रतिशत की गिरावट आ रही है।

शिमला के कुफरी में वीरवार को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को लेकर गहन चर्चा के लिए एक सेमिनार का आयोजन सर्व शिक्षा अभियान के तहत नेशनल यूनिवर्सिटी आफ एजूकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (न्यूपा) की ओर से किया गया। अतिरिक्त मुख्य सचिव पीसी धीमान की अध्यक्षता में हुए इस सेमीनार में प्रधान सचिव (वित्त) श्रीकांत बाल्दी, प्राथमिक शिक्षा निदेशक आरके प्रूथी, उच्च शिक्षा निदेशक दिनकर बुराथोकी, बीईईओ, डीपीओ और डिप्टी डायरेक्टर के अलावा अन्य कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। डिपार्टमेंट ऑफ स्कूल नॉन फार्मल एजूकेशन हेड नलिनी, प्रो. सुरेश कुमार, प्रो. एके सिंह और डा. कश्पीय अवस्थी भी भी इस अवसर पर मौजूद थे।

अतिरिक्त मुख्य सचिव पीसी धीमान ने अपने संबोधन में कहा कि प्रदेश के स्कूलों में घट रही छात्रों की संख्या इंप्लायमेंट के लिए भी बड़ा खतरा है। यहां स्कूलों में 3 साल से दाखिले के परिणाम सही नहीं आ रहे हैं। अब तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने लगे हैं। ऐसे में शिक्षकों को बहुत ध्यान देने की जरूरत है।

श्रीकांत बाल्दी ने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए अपने नियमों में ढील दे। समाज बदलने के लिए शिक्षा का होना अति आवश्यक है। बाल्दी ने पूर्व में शिक्षा विभाग में रहते हुए अपने विचार भी साझा किए। उच्च शिक्षा निदेशक दिनकर बुराथोकी, प्राथमिक शिक्षा निदेशक आरके प्रूथी ने भी शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताया।

सेमिनार में एक सर्वेक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि ड्रॉप आउट के हाल यदि ऐसे ही रहे तो वर्ष 2025 तक सभी सरकारी स्कूलों को बंद होने की नौबत आ जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2003 में 89.66 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में ते,जबकि 10.34 बच्चे प्राइवेट स्कूलों में। अब वर्ष 2014-15 में 41.85 फीसदी बच्चे प्राइवेट मॉडल स्कूलों में एडमिशन ले रहे हैं।

कार्यशाला में मंडी जिला के एक मॉडल स्कूल का उदाहरण भी दिया गया। डिमांड के बाद पीपीपी मोड पर एक स्कूल शुरू किया गया। विभाग ने इसकी परमिशन दी। यह काफी सक्सेस हुआ। पहले इस स्कूल की स्ट्रेंथ 50 थी, जो आज बढ़कर 300 हो गई है।कहा गया कि निजी मॉडल स्कूलों की ओर लोगों का रुझान बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जिस कारण सरकारी स्कूलों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।

सेमिनार में अधिकांश वक्ता हालांकि इस बात का ध्यान रखते रहे कि सरकार के खिलाफ कोई कड़वी बात न निकले, लेकिन कुछ वक्ताओं ने दिल खोल कर भड़ास निकाली। कुछ लोगों ने दो टूक कह दिया कि राजनेताओं के फोन स्कूलों में सही ढंग से काम नहीं होने दे रहे। उनका इशारा शिक्षकों के अंधाधुंध तबादलों से था। व्यवस्था पर भी सवाल उठाए गए। कहा गया कि शिक्षकों का 40 फीसदी समय ट्रांसफर व पोस्टिंग करवाने में निकलता है, 20 फीसदी समय लिटिगेशन आरटीआई मैटर में पूरा होता है, 20 प्रतिशत टुअरिंग आदि में और 10 फीसदी समय मीटिंग में बीत जाता है। शिक्षण कार्य के लिए बहुत कम समय बच पाता है। ऐसे में शिक्षा में गुणवत्ता कैसे आएगी।

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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