आप सोचते हैं या आपका माहौल सोचता है? क्या आप वही सोचते हैं, जैसा आपके आसपास के लोग सोचते हैं? आप को हिन्दू माहौल मिला तो आप हिन्दू की तरह सोचते हैं, आपको मुस्लिम माहौल मिलता है तो आप मुस्लिम की तरह सोचते हैं। भारत में पैदा हुए तो एक तरह से सोचोगे, पकिस्तान में पैदा हुए तो दूसरी तरह से सोचोगे। बड़ी जात के हो तो एक तरह से सोचोगे, अमीर हो तो एक तरह से सोचोगे। ये ख़ास जगह पर पैदा होने की वजह से अगर आपकी एक ख़ास सोच बन गयी है, तो ये आपकी अपनी सोच नहीं है….।
आप अपनी सोच विकसित कीजिये, वही असली सोच होगी। क्योंकि अपनी जात, अपना मज़हब, अपने वर्ग के हिसाब से सोचना गुलाम सोच है। क्योंकि तब आप अपना दिमाग इस्तेमाल कर ही नहीं पा रहे। आप अपने समुदाय की गलत सलत हर बात को सही मान कर चलते रहते हैं।
दुनिया के ज्यादातर लोग ऐसे ही सोचते हैं और मर जाते हैं। लेकिन चंद लोग सोच के डब्बे से बगावत कर देते हैं और ऐसे लोग आज़ाद होकर सोचना शुरू करते हैं। वे जात, मज़हब, मुल्क की कैद से आज़ाद हो जाते हैं। आज़ाद सोच का जादू आपको सबसे अलग, सबसे ऊपर ले जाता है। आप खुद ही आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि दूसरे लोगों को ये सच्चाई क्यों नहीं दिखाई देती?
मेरे संबंधी तक मेरी बात समझ नहीं पा रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि एक हिन्दू, ब्राह्मण, मध्य वर्ग का भारतीय व्यक्ति क्यों दलितों के समान अधिकारों, अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ, औरतों के अधिकारों के हक में, पाकिस्तान से दोस्ती के पक्ष में क्यों बोल रहा है? मेरे सम्बन्धियों के सोशल मीडिया ग्रुप में पाकिस्तान, मुसलमानों, दलितों का माखौल उड़ाने वाले मैसेज होते हैं।
मैं अक्सर सोशल मीडिया पर नफरत से भरे मेसेज या कमेन्ट का सामना करता हूं। मैं कभी कभी नफरती बातें लिखने वाले लोगों की वाल पर जाकर उनके बारे में थोड़ी और जानकारी लेता हूं तो मुझे उन लोगों में जो कॉमन बातें मिलती हैं वो यह हैं –
बड़ी ज़ात का होगा, बहुसंख्य समुदाय का होगा, शहरी होगा, उसकी फ्रेंड लिस्ट में उसी के धर्म और जाति के दोस्त होंगे, दूसरे धर्म या जाति के दोस्त नहीं होंगे, मोदी भक्त होगा, सेना भक्त होगा, मुस्लिम विरोधी होगा, दलित विरोधी होगा, साम्यवाद विरोधी होगा, औरतों की बराबरी का मज़ाक उड़ाने वाला होगा, पकिस्तान को गाली देता होगा, अपने विकास का समर्थन करने वाला, लेकिन आदिवासी जाएं भाड़ में वाला होगा, अपने ही फोटो पोस्ट करता होगा, गोडसे का भक्त होगा, गांधी, अम्बेडकर को गाली देगा और धार्मिक होगा आदि आदि। यह लोग अपने जन्म के कारण मिली परिस्थितियों के हिसाब से सोचते हैं। यह लोग भारत में भी हो सकते हैं, पाकिस्तान में भी हो सकते हैं।
यहां जरूरत है वैज्ञानिक ढंग से सोचना शुरू करने की। उसी से आप नफरत और भावुकता से अलग होकर सोच पाते हैं।
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