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‘हार्क’ ने कृषि में फूंकी जान, खेत भी अपना-हाट भी अपना

देहरादून। देश में किसान ही एकमात्र ऐसा उत्पादनकर्ता है, जो बाजार में अपने उत्पादों की कीमत स्वयं तय नहीं कर सकता, बल्कि

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उसे मनमाने ढंग से दलाल और व्यापारी ही तय करते हैं। इस कुव्यवस्था में किसानों के हाथ अकसर लागत मूल्य भी नहीं लगता, जबकि उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते इन उत्पादों की कीमतें कई गुणा बढ़ जाती हैं। लेकिन उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में किसान कुछ हटकर विशेष करते नजर आ रहे हैं। इन्हीं प्रयासों में उत्तरकाशी की रंवाई घाटी और चमोली जनपद के लगभग 25 हजार किसानों के 30 के करीब उत्पाद आज दूर- दूर तक बाजार में पैठ बना चुके हैं। इसमें फूल, फल, सब्जियां व अनाज के अतिरिक्त अचार, तुलसी उत्पाद, जैम, जैली, जूस, फलों की कैंडी और मुरब्बा आदि भी शामिल हैं।

इसमें दिलचस्प बात यह है कि किसानों के 320 से अधिक समूह पहले ही तय कर लेते हैं कि कौन सा गांव किस फूल, फल, सब्जी व अनाज का उत्पादन करेगा। फसल तैयार हो जाने पर ये किसी बाजार विशेषज्ञ की भांति अपने उत्पादों के दाम भी तय करते हैं और फिर उन्हें उत्तराखंड समेत दिल्ली, उत्तर प्रदेश व बंगलुरू के बाजारों में पहुंचाते हैं। आज इनका करीब 37 हजार टन से अधिक माल सप्लाई होता है और आमदनी का आंकड़ा 75 करोड़ रुपये पार कर गया है। इनमें ऐसे किसान भी हैं जो सालाना पांच लाख रुपये से अधिक का मुनाफा कमा रहे हैं।

किसानों की यह बदली हुई आर्थिक तस्वीर उम्मीदों से भरी है, लेकिन वर्ष 2004 तक हालात ऐसे नहीं थे। खेतों की शान बने यही किसान खेतीबाड़ी से जी चुराते थे और सिर्फ पारंपरिक खेती तक ही सिमटे थे। आमदनी के नाम पर एक किसान सालभर में कृषि से बामुश्किल 12 हजार रुपये कमा पाता था। लेकिन, बीते 10 सालों में जो तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है, उसका श्रेय हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) संस्था के आर्थिक मैनेजमेंट गुरु एवं संचालक महेंद्र कुंवर को जाता है। 10 साल पहले श्री कुंवर जब उत्तरकाशी पहुंचे तो वहां किसानों की दशा बेहद दयनीय थी। वे जो कुछ भी उगाते, उसका कुछ ही भाग बाजार में पहुंच पाता था। जिस उत्पाद को बाजार नसीब होता भी, उसका सिर्फ 10 फीसदी लाभ ही कृषक को मिल पा रहा था। इसे देखते हुए श्री कुंवर ने किसानों के समूह बनाने की रणनीति पर काम शुरू किया। अलग-अलग बाजार में पहुंच रहे माल को एक जगह एकत्रित करवाया। इससे माल बड़ी मात्रा में एक साथ बाजार पहुंचने लगा। इसी तरह उन्होंने चमोली के ग्रामीणों को भी एकत्रित किया। बाजार की मांग के हिसाब से फसल उगाने का काम शुरू हुआ। सहयोग मिलने पर ग्रामीणों के समूह खुद ही यह तय करने लगे कि कौन सा गांव, कब, कौन सी सब्जियां या अनाज उगाएगा। प्रबंधन व तकनीकी ज्ञान हार्क का था, मगर फसल व उसके दाम के मालिक किसान ही थे।

हार्क के संचालक महेंद्र कुंवर बताते हैं कि उनके बनाए गए समूहों से जुड़े 25 हजार किसानों की जो आमदनी एक दशक पहले तक कुछ लाख तक सिमटी थी, उसमें आज जमीन-आसमान का फर्क आ गया है। यह सिर्फ इसलिए संभव हो पाया कि कृषि उत्पादों का जो व्यवसाय पहले एक व्यक्ति कर रहा था, उसे मिलकर आज हजारों लोग अंजाम दे रहे हैं।

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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