नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जन सूचना ढांचे और नवरचना मामलों के सलाहकार सैम पित्रोदा का कहना है कि अब समय आ गया है कि भारत खेती
हो सकता है आप उनकी सलाह से चौंक जाएं, लेकिन ये भविष्य की कोई तकनीक नहीं है, बल्कि ऐसा मौजूदा समय में हो रहा है। बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका हाइड्रोपोनिक्स कहलाता है। इसमें फसलें उगाने के लिए द्रव्य पोषण या पौधों को दिए जाने वाले खनिज पहले ही पानी में मिला दिए जाते हैं।
सैम पित्रोदा मानते हैं कि भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश को न सिर्फ रहने के लिए बल्कि खेती के लिए भी बहुमंजिली इमारतों का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि खाली जमीन वन, खेल के मैदान, पार्क आदि के लिए इस्तेमाल की जा सके। सैम पित्रोदा जमीन के दूसरे उपयोगों के बारे में सोच रहे हैं। मीडिया से हुई एक खास बातचीत में उन्होंने कहा, ”मैं वर्टिकल फार्मिंग की वकालत करूंगा। यानी जमीन पर खेती करने की जगह ऊंची-ऊंची इमारतों में खेती। अभी आप चार एकड़ जमीन पर टमाटर उगा रहे हैं। मैं कहता हूं कि आधा एकड़ जमीन लीजिए, ऊंची इमारत बनाइए और हर मंजिल पर टमाटर उगाइए। यहां तक कि बिना मिट्टी के भी टमाटर उगाया जा सकता है।”
क्या है वर्टिकल फार्मिंग?
वर्टिकल फार्मिंग में खेती सपाट जमीन पर न होकर बहुमंजिली इमारतों में होती है। इसे एक तरह का बहुमंजिला ग्रीन हाउस भी कहा जा सकता है। अमरीका, चीन, मलेशिया और सिंगापुर जैसे दुनिया के कई देशों में पहले से ही वर्टिकल फार्मिंग हो रही है। इसमें एक बहुमंजिला इमारत में नियंत्रित स्थितियों में फल-सब्जियां उगाए जाते हैं। इमारत की दीवारें कांच की होती हैं और अत्याधुनिक तकनीक से सिंचाई की जाती है। कांच की दीवारों के जरिए फसलों को लगातार सूर्य की रोशनी मिलती रहती है।
भारत में हालांकि अभी वर्टिकल फार्मिंग तो नहीं हो रही, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तरीके से पंजाब में आलू उगाया जा रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के उपमहानिदेशक डाक्टर स्वप्न दत्ता कहते हैं कि वर्टिकल फार्मिंग के बहुत फायदे हैं।
उन्होंने बताया, ”बड़े पैमाने पर अगर ये होगा तो खाने-पीने के सामान का दाम भी कम हो जाएगा। साल भर आलू, टमाटर और पत्तेदार सब्जियां आदि उगाई जा सकेंगी और परिवहन का खर्चा कम हो जाएगा। इससे पौधों में होने वाली बीमारियां और कीट खत्म हो जाएंगे, जिससे कीटनाशकों का इस्तेमाल कम हो जाएगा। इसका फायदा हमारी सेहत और पर्यावरण को होगा। काफी हद तक खाद्य संकट भी खत्म हो पाएगा।”
वे कहते हैं, ”जो जमीन खेती के लायक नहीं है, उस पर इस तरह की इमारतें बनाकर खेती की जा सकती है। आज शहरों में रहने के लिए जो इमारते बन रही हैं, उनमें भी कुछ मंजिलें इस काम के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं। ये देखने में भी अच्छा लगेंगी और सिंचाई के पानी के लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग हो सकती है।”
आपको इस समय यह दूर की कौड़ी लग सकती है, लेकिन हो सकता है कुछ समय बाद भारत में यह एक सच्चाई में परिवर्तित हो जाए।
‘बिना मिट्टी के बहुमंजिला इमारतों में उगाएं सब्जियां’
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