चम्पावत। चंद राजाओं की राजधानी रही चम्पावत में उत्पादित जैविक चाय की महक सात समंदर पार तक पहुंच चुकी है। यूरोपियन देशों
उल्लेखनीय है कि दो सौ साल पहले जब अंग्रेज चम्पावत आए थे, उस समय उन्होंने ही यहां चाय की खेती शुरू की थी। लेकिन वह सीमित स्थानों पर ही हो सकी। आजादी के बाद यह बागान भी रखरखाव के अभाव में उजड़ गए थे। टी बोर्ड के गठन के बाद वर्ष 1995-96 से पुन: पर्वतीय क्षेत्रों में चाय उत्पादन को प्रोसाहन देने के प्रयास शुरू हुए। इसी कड़ी में चम्पावत जनपद में वन पंचायत सिलंगटाक में भी चाय बागान की शुरुआत हुई। वर्ष 2004 में फिर से चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायतों में काश्तकारों की भूमि पर इसे लगाने की पहल हुई। 2007 में छीड़ापानी में नर्सरी बनाकर इसके रोपण में तेजी आ गयी। अभी तक जनपद की सिलंगटाक, छीड़ापानी, मुड़ियानी, मौराड़ी, मझेड़ा, चौकी, च्यूरा खर्क, भगाना भंडारी, नरसिंह डांडा, कालूखाण, गोसनी, फुंगर, लमाई, चौड़ा राजपुर, खेतीगाड़, बलाई आदि ग्राम पंचायतों की 172 हेक्टेयर भूमि में चाय की पौध लहलहाने लगी है। टी बोर्ड के स्थानीय मैनेजर डैसमेंड बताते हैं कि चाय के पौधों की नर्सरी यहां तैयार होने से करीब चार सौ परिवारों को दैनिक रोजगार मिल रहा है। मनरेगा योजना के तहत भी यहां इस खेती को प्रोत्साहित करने के प्रयास हुए हैं।
उन्होंने बताया कि शुरुआत में टी बोर्ड ही चाय के पौंधों के रोपण के साथ तीन साल तक लगातार इसकी देखभाल करता है और सात साल बाद भू- स्वामी को बागीचे का पूरा स्वामित्व दे दिया जाता है। पिछले दो वर्षों में यहां 38 हजार किलो की एक्सपोर्ट क्वालिटी की जैविक चाय का उत्पादन हुआ। इस वर्ष अप्रैल माह तक 50 हजार किलो के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
चम्पावत से जैविक चाय पहले कोलकाता भेजी जाती है। वहां आजकल टी मार्केंटिंग कंपनी पैरा माउंट इस चाय को खरीद कर जर्मनी, इग्लैंड सहित कई यूरोपियन देशों में भेज रही है। वर्तमान में चाय की बिक्री दर 640 से 1200 रूपये प्रतिकिलोग्राम चल रही है।
वन पंचायतों में भी हो चाय की खेतीः स्थानीय वन पंचायतों के सरपंच लगातार मांग उठा रहे हैं कि वन पंचायतों की खाली पड़ी बंजर भूमि पर भी चाय की बागवानी की जाए ताकि पंचायतों की आय में भी वृद्धि हो और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिल सके। बताया जाता है कि ढकना, डिंगडई, चौकी, पुनेठी की वन पंचायतों की भूमि इसके लिए काफी अनुकूल है। इसका बकायदा मृदा परीक्षण भी हो चुका है। इस बारे में वनपंचायत सरपंचों की ओर से टी बोर्ड को प्रस्ताव भी भेजे गए हैं, लेकिन वर्ष 1997 में न्यायालय के एक फैसले के बाद वन पंचायतों में अन्य व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगी हुई है। इसी कारण टी-बोर्ड वन पंचायतों की भूमि पर चाय बागान विकसित नहीं कर पा रहा है।
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