चंबा। प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में सेब की फसल को अब बड़े पैमाने पर ड्राईफ्रूट के रूप में बाजार में लाने का
वैसे प्रदेश के ऊपरी दुर्गम क्षेत्रों में आरंभ से ही सेब को टुकड़ों के रूप में सुखा कर रखा जाता रहा है ताकि इसे सारा साल उपयोग में लाया जा सके। वहां रिश्तेदारों एवं मेहमानों को भी उपहार स्वरूप ड्राईड एप्पल देने की परंपरा रही है। लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों से बागवानों ने इसे बाजार में भी बिक्री के लिए लाना शुरू किया है। चंबा जिले के पांगी, भरमौर, होली और तीसा आदि क्षेत्रों में अब बड़े पैमाने पर सेब को सुखा कर बेचा जाने लगा है।
चंबा जिले के होली में इस बार भी बागवानों ने बड़े पैमाने पर सेब को सुखाने का काम छेड़ दिया है। अति दुर्गम क्षेत्र होने के कारण इन इलाकों से रसदार सेब बहुत कम मात्रा में ही बाजार में पहुंच पाता है, लेकिन मंदिरों में प्रसाद के तौर पर मिलने वाले सूखे मेवे के रूप में यह लोगों के घरों तक अवश्य पहुंच जाता है।
होली क्षेत्र के कई ऐसे इलाके हैं जो अभी भी सड़क सुविधा से नहीं जुड़ पाए हैं। इन इलाकों में पैदल चलने योग्य रास्ते तो हैं, मगर बोझा लेकर पगडंडी से उतर पाना संभव नहीं है। वहां सेब की भरपूर पैदावार होती है, लेकिन यातायात की व्यवस्था के अभाव में बागवान रस भरे सेब बाजार में नहीं बेच पाते। इसलिए सेब को पेड़ से उतार कर पहले उन्हें सुखाया जाता है और फिर थोड़ा-थोड़ा बाजार में पहुंचाया जाता है।
इसमें अधिकांश सूखा सेब मंदिरों के बाहर लगने वाली प्रसाद की दुकानों में सप्लाई किया जाता है। हालांकि सेब को सुखाने के लिे बागवानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, मगर अक्सर इसके दाम अच्छे मिल जाते हैं। इस समय सूखे सेब की कीमत ढाई सौ से तीन सौ रुपये प्रति किलोग्राम है।
होली क्षेत्र के चलेड़, पियूहर, अंदरला, कलाह, गुआड, खनाहर, धारड़, कुवारंसी व ग्रोंडा आदि गांव मुख्य सड़क से 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर हैं। सेब सीजन के दौरान बरसात के कारण पैदल रास्ते भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में लोगों के पास सेब को सुखा कर बेचने के सिवा और कोई चारा ही नहीं बचता। धूप में सुखाने के बाद सेब को सहज ढंग से बाजार में पहुंचाया जाता है और धार्मिक स्थानों में जाकर व्यापारियों को बेच दिया जाता है। बड़े धार्मिक स्थानों में टनों के हिसाब से सूखे सेब की खपत हो जाती है।
स्थानीय बागवानों प्रेम सिंह, चिरंजीत और कामेश्वर दत्त कहते हैं कि होली उपमंडल का सेब उच्च गुणवत्ता का होता है, जिसका सूखाने के छह माह बाद भी जायका बरकरार रहता है। उन्होंने कहा कि सरकार इस सूखे सेब को यदि ढुलाई की कम लागत में बाहरी क्षेत्रों की मंडियों तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दे तो बागवानों को काफी लाभ मिल सकता है। अभी मुख्य सड़क तक माल पहुंचाने का भाड़ा तीन-चार सौ रुपये तक पड़ जाता है, जोकि बहुत अधिक है।
होली में बागवानी विभाग के अधिकारी डीआर वर्मा भी कहते हैं कि यहां अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों से सीजन में सेब की फसल मुख्य सड़क तक पहुंचाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में बागवान सेब को सुखा कर मार्किट में पहुंचा रहे हैं। विभाग की ओर से भी बागवानों को इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है।
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