श्रीमद भगवद गीता हिंदुओं का सर्वश्रेष्ठ धर्मग्रंथ है। महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से इनकार करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते हैं और उन्हें कर्म व धर्म के ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को
यहां प्रस्तुत है श्रीमद् भगवद् गीता के 20 अनमोल उपदेशः
–जो इंसान अपने काम में आनंद खोज लेते हैं, पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं।
-जीवन न तो भविष्य में है, न अतीत में। जीवन बस इसी पल में है।
–सभी प्राणियों के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है, जितना जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है, उस पर शोक नहीं करना चाहिए।
-फल की इच्छा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है।
–मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वह विश्वास करता है, वैसा वह बन जाता है।
-क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। तर्क नष्ट होते ही व्यक्ति का पतन हो जाता है।
–मेरा- तेरा, छोटा- बड़ा, अपना- पराया यह सब मन से मिटा दो। फिर सब तुम्हारा और तुम सबके।
-सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न इस लोक में है और न ही परलोक में।
–जो लोग मन को नियंत्रित नहीं कर पाते, उनके लिए मन शत्रु के समान काम करता है।
-जो व्यक्ति सभी इच्छाएं त्याग देता है, ‘मै’ और ‘मेरा’ की भावना से मुक्त हो जाता है, उसे अपार शांति की प्राप्ति होती है।
–धरती पर जिस प्रकार मौसम में बदलाव आता रहता है, उसी प्रकार जीवन में सुख- दुख भी आते जाते रहते हैं।
-जो व्यवहार आपको दूसरों से पसंद ना हो, ऐसा व्यवहार आप दूसरों के साथ भी ना करें।
–समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी भी किसी को नहीं मिलता।
-व्यक्ति का केवल मन ही किसी का मित्र या शत्रु होता है।
–लोग क्या कहते हैं इस पर ध्यान मत दो, अपना काम करते रहो।
-मनुष्य को परिणाम की चिंता किए बिना निस्वार्थ एवं निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
–मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए और न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए।
–कोई भी इंसान जन्म से नहीं, अपने कर्मों से महान बनता है।
–नरक के तीन द्वार होते हैं- वासना, क्रोध और लालच।
-जब जब धरती पर पाप, अहंकार और अधर्म बढ़ेगा, मैं उसका विनाश कर पुन: धर्म की स्थापना करने के लिए अवश्य अवतार लेता रहूंगा।