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पांच पैसे किलो सेब !

उत्तरकाशी। कड़ी मेहनत से तैयार की फसल जब आंखों के सामने बर्बाद हो रही हो या फिर कौड़ियों के दाम पर बिक रही हो तो किसान भीतर तक टूट जाते हैं।

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उनसे सारे हौसले पस्त हो जाते हैं। इस पीड़ा का अंदाजा वही लगा सकता है, जो खेतीबाड़ी की पृष्ठभूमि रखता हो। एयरकंडीशंड कार्यालयों में रहने वाले हुकमरानों के लिए ये मामूली बातें हो सकती हैं।   उत्तरकाशी जिला के उपला टकनौर क्षेत्र के सेब बागवान इन दिनों ऐसे ही पीड़ादायक दौर से गुजर रहे हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत से सेब की जो फसल तैयार की थी, उसे प्रसासनिक उपेक्षा के कारण मात्र पांच पैसे प्रति किलोग्राम की दर से बिकते देखना पड़ा। ऐसा भी नहीं है कि इस कुव्यवस्था की मार बागवानों पर पड़ी है। बागवानों को तो सरकार ने सेब का अच्छा समर्थन मूल्य 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दिया है, जो हिमाचल प्रदेश के मुकाबले कई गुणा अधिक है। बागवान यह देख कर मायूस हैं कि उनसे सेब खरीदने के बाद प्रशासन ने उसकी कोई सुध नहीं ली और बाद में गोदाम खाली करने के नाम पर उसे कौड़ियों के भाव निपटा दिया।

प्राकृतिक आपदा में गंगोत्री हाईवे तबाह होने पर उपला टकनौर क्षेत्र में सेब की फसल के बागीचों में ही सड़ने का संकट खड़ा हो गया था। सरकार ने 30 रुपये प्रति किलो समर्थन मूल्य पर जीएमवीएन से 16333.51 क्विंटल सेब की खरीद कराई। अगस्त में शुरू हुई खरीद सितंबर तक चली। निगम ने उपला टकनौर के हर्षिल, मुखबा, धराली, छोलमी, सुक्की, जसपुर, झाला, बगोरी से काश्तकारों से सेब तो खरीद लिए, लेकिन उनके भंडारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं की। भारी मात्रा में सेब सेब खुले में ही पड़ा रहा। लगभग चार हजार क्विंटल सेब तो खरीद के दौरान ही खराब हो गया। सितंबर अंतिम सप्ताह में राजमार्ग खुलने पर अधिकारियों ने देहरादून में बैठकर

बिना ग्रेडिंग के ही इस सेब की 14 रुपये किलो की दर से नीलामी कर दी गई। खरीददार ने भी 30 अक्तूबर तक इसमें से ‘ए’ ग्रेड का करीब 4600 क्विंटल सेब उठाकर हाथ खड़े कर दिए।

शेष बचा करीब 11,500 क्विंटल सेब उपला टकनौर क्षेत्र में लोगों के घरों-होटलों में बनाए गए गोदामों में खराब होने लगा तो प्रशासन को यह सारा सेब महज 60 हजार रुपये में नीलाम करना पड़ा। ऐसे में 30 रुपये की दर से खरीदा गया यह सेब महज पांच पैसे की दर से बिका। निगम के अधिकारी इसी से खुश हैं कि चलो अब खरीददार गोदाम खाली कर देंगे।

प्रशासन की इस नालायकी से नाराज हर्षिल के बागवान डा. नागेंद्र रावत कहते हैं, ‘‘व्यवस्थित ढंग से सेब का भंडारण होता और फल प्रसंस्करण द्वारा इससे पल्प तैयार किया जाता तो यह खरीद घाटे के बजाय फायदे का सौदा साबित हो सकती थी। सरकार के अधिकारियों ने इस बारे में लोगों से राय मशविरा तक नहीं किया।’’

जीएमवीएन के सहायक महाप्रबंधक धनंजय असवाल कहते हैं, ‘‘सेब भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण अस्सी फीसदी से अधिक सेब गोदामों में ही सड़ गया। करीब पांच करोड़ में खरीदे गए सेब की नीलामी से 65 लाख रुपये वसूल हुए। सड़ रहे सेबों से खराब हो रहे गोदाम खाली कराने जरूरी थे। इस बार की आपदा और सेब खरीद का अनुभव भविष्य के लिए सबक है।’’

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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