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डॉट भारत डोमेन से हिंदी का कुछ भला होगा?

नई दिल्ली। भारत सरकार ने ‘डॉट भारत’ नाम से डोमेन देवनागरी लिपि में लॉन्च किया है। इसलिए अब हिम न्यूजपोस्ट.कॉम या

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हिलपोस्ट.इन की तरह आपके पास डोमेन हिम न्यूजपोस्ट.भारत, हिंदी या सात अन्य भाषाओं में जैसे मराठ, कोंकणी और नेपाली में उपलब्ध हो सकता है। इस साल के आख़िर में अन्य भाषाओं को इससे जोड़ा जाएगा।.भारत’ डोमेन वाले इंटरनेट पतों को हिंदी के अलावा बांग्ला, गुजराती, पंजाबी, तमिल, तेलुगू और उर्दू में इस तरह से लिख सकेंगे –.ভারত, .భారత్, .ભારત, .بھارت, .ਭਾਰਤ, और .இந்தியா.

सरकारी सूत्रों के हवाले से मीडिया में यह बात कही गई है कि यह सब प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के डिजिटल इंडिया के सपने का हिस्सा है। भारतीय डोमेन नाम के इस प्रस्ताव को 2011 में आईसीएएनएन ने मान्यता दी थी। आईसीएएनएन डोमेन नाम को मान्यता देने की वैश्विक संस्था है। इसने भारतीय डोमेन नाम को लांच करने के लिए भारत के डोमेन ‘.इन’ के लिए जिम्मेवार संस्था एनआईएक्सआई का अधिग्रहण किया है।

वर्ल्ड वाइड वेबः अब दुनिया काफ़ी आगे निकल चुकी है। अब वेबसाइट के पते की भाषा बहुत फर्क नहीं डालती है और ऐसा इसलिए नहीं है कि लोग अंग्रेज़ी सीख गए हैं बल्कि इसका कारण है कि वे अब मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करते हैं। भारत में 10 इंटरनेट यूज़र्स में से नौ मोबाइल फ़ोन के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। मार्च 2014 में भारतीय टेलीकॉम रेगुलेटर की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 25.2 करोड़ इंटरनेट सब्सक्राइबर में 92 फ़ीसदी मोबाइल यूज़र्स है।

नहीं टाइप करते वेब पताः बेंगलुरू सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी के प्रनेश प्रकाश कहते हैं, “मोबाइल पर शायद ही यूज़र्स वेब पता टाइप करते हैं। इंटरनेट का अधिकांश इस्तेमाल यूज़र्स मोबाइल ‘एप’ के माध्यम से करते हैं या फिर लिंक पर क्लिक कर करते हैं। “ अधिकतर मामलों में वास्तविक वेब पता यूज़र्स को नहीं दिखता है और इसमें भाषा से बहुत ही कम फर्क़ पड़ता है कि पता में किस भाषा का इस्तेमाल हुआ है।

प्रकाश कहते हैं, “किसी भी मामले में, यहां तक कि मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करने वाले भी अक्सर साइट की खोज करते हैं बजाए वेबसाइट का पता टाइप करने के। वास्तविक वेब पता टाइप करना सर्च की तरह महत्वपूर्ण नहीं रहा। ”

विशेषज्ञों के मुताबिक़ कंटेट ज़्यादा बड़ा मसला है। भारतीय भाषाओं में ऑनलाइन कंटेट का काफ़ी अभाव है। एक इंटरनेट यूज़र जो बिल्कुल भी अंग्रेज़ी नहीं जानता है, उसके पास बहुत कम विकल्प होता हैं। भाषाई इनपुट और ग़ैर-मानक कीबोर्ड के अभाव ने विशेष तौर पर मोबाइल पर यूज़र्स की मुश्किलों को टेक्सट टाइप करने के मामले में बढ़ा दिया है। कंप्यूटर पर कई लोग रोमन लिपि का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ये मोबाइल पर आम तौर पर नहीं होता है। लेकिन यह कंटेट से बड़ा मसला नहीं है।

भारत में 25 करोड़ लोग अंग्रेज़ी में इंटरनेट तो इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अभी भी 1.2 अरब लोगों की आबादी में दस में से एक ही अंग्रेज़ी बोलने में सक्षम है और यह चीन या जापान की तुलना में ज़्यादा बड़ा और जटिल मसला है। भारत में तीस बड़ी भाषाएं हैं जिसमें से हर एक भाषा कम से कम दस लाख लोग बोलते हैं। भारतीय जनगणना 2001 के मुताबिक़ अगर दस हज़ार लोगों के द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं को गिने तो भारत में 122 भाषाएं हैं।

भारतीय भाषाओं में ऑनलाइन कंटेट बहुत कम है। उदाहरण के तौर पर विकिपीडिया को ही लीजिए। इसे दुनिया भर में हर महीने 50 करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं।  इस पर अंग्रेज़ी में 45 लाख लेख मौजूद हैं, लेकिन हिंदी में सिर्फ़ एक लाख, तमिल में 61 हज़ार, तेलुगू में 58 हज़ार, मलयालम में 36 हज़ार, और बांग्ला में 30 हज़ार ही है।

भारतीय भाषाओं में अभाव- कम अंग्रेज़ी जानने वाले लोग भी विकिपीडिया के अंग्रेज़ी लेखों को ही अनुवाद के सहारे पढ़ाने के लिए मज़बूर हैं। अनुवाद करने के लिए जिन टूल्स का वे इस्तेमाल करते हैं वे बहुत अच्छे नहीं है? इन टूल्स की सहायता से किए अनुवाद में गलतियों की भरमार होती है और उन्हें समझना मुश्किल काम है।

भारत में कई समाचार पोर्टल हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में चल रहे हैं तो क्या ये सभी मीडिया संस्थाएं ‘.भारत’ डोमेन का इस्तेमाल करेंगे? विशेषज्ञों का कहना है कि कई लोग बेशक करेंगे, लेकिन वे वर्तमान पतों को ब्लॉक करने के बजाए उन्हें जारी रखेंगे।

उदाहरण के तौर पर बीबीसी हिंदी सेवा bbc.bharat का पंजीकरण करवा सकता है ताकि कोई और इसका ग़लत इस्तेमाल ना करें। ब्राउजर में bbc.bharat डालने पर यह यूज़र्स को bbc.co.uk/hindiपर ले जाएगा। मीडिया संस्थाएं एकरूपता को कायम रखने के लिए एक ही पते का इस्तेमाल करने को तरजीह देंगे।

सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी के सुनील अब्राहम का कहना है कि डोमेन के पंजीकरण से एनआईएक्सआई को कुछ फायदा होगा। चूंकि ग़ैर लाभकारी संस्था है इसलिए इससे मिले पैसों का इस्तेमाल वापस भारतीय भाषाओं के तकनीकी विकास और कंटेट को सुधारने में होगा।

सरकारी क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के इस कंप्यूटरीकरण का इस्तेमाल जरूर बड़े पैमाने पर होगा। माइक्रोसॉफ्ट के प्रोजेक्ट ‘भाषा’ के मुखिया मेधाश्याम कर्नम का कहना है कि अधिकतर राज्य सरकारें कंप्यूटर के मामले में स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल करती हैं। प्रोजेक्ट ‘भाषा’ के अंतर्गत माइक्रोसॉफ़्ट, विंडोज और ऑफिस को हिंदी, नेपाली और अन्य 12 भारतीय भाषाओं में पेश करता है।

कर्नम का कहना है, ‘डोमेन ‘.भारत’ अच्छी शुरुआत है लेकिन यह एक बड़ी तस्वीर का छोटा सा हिस्सा है। अभी भारतीय भाषाओं को वेब की दुनिया में लंबा सफ़र तय करना है।”

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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